Tuesday, August 30, 2011

नोटिस चस्पा होने के बाद पूर्व जज कोर्ट में पेश


चर्चित नोटकांड मामले में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट की पूर्व जज निर्मल यादव को सीबीआइ की विशेष अदालत ने शनिवार को अंतरिम जमानत दे दी। उनसे 25 हजार रुपये का बेल बांड भरवाया गया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 सितंबर की तिथि निर्धारित की है। इस वर्ष 4 मार्च को मामले में सीबीआइ की ओर से दायर चार्जशीट के बाद विशेष अदालत ने निर्मल यादव को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के लिए तीन बार समन जारी किए थे। पर वह नहीं पेश हुई। इसके बाद अदालत ने यादव के गुड़गांव आवास के बाहर नोटिस चिपकाने के निर्देश दिए थे। उन्हें छोड़कर बाकी सारे आरोपी अदालत में पेश हो चुके थे। शनिवार को आखिरकार वह सीबीआइ की विशेष अदालत में पेश हुई। उनके मित्र प्रद्युमन यादव बतौर जमानती पेश हुए। यादव ने 18 अगस्त को समन जारी किए जाने के अगले ही दिन हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने निचली अदालत को अंतरिम जमानत के निर्देश देने के साथ सीबीआइ को 7 सितंबर के लिए नोटिस जारी किया था। न्यायपालिका को हिला देने वाले चर्चित मामले में लंबे इंतजार के बाद पहली बार अदालत में पेश हुई पूर्व जज निर्मल यादव पेशी के वक्त मीडिया से बचती नजर आई। सुबह करीब 10:00 बजे मामले की सुनवाई शुरू हुई। कुछ इंतजार के बाद 10:50 बजे अदालत में पेश हुई निर्मल यादव जब जमानत संबंधी प्रक्रिया पूरी करने के बाद लौटने लगी तो उन्होंने अदालत से बाहर एक गेट पर मीडियाकर्मियों को देखकर दूसरे गेट का रुख कर लिया, कोई भी उनकी तस्वीर न खिंच सके, इसके लिए वह अदालत परिसर में खड़ी गाड़ी में बैठकर रवाना हो गई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में तब अजीब स्थिति बन गई जब एमडीएस गिल नामक एक व्यक्ति विशेष जज के समक्ष खुद के पास पुख्ता सबूत होने का दावा करते हुए मामले से जुड़े तथ्य पेश करने के लिए बहस करने लगा, लेकिन जज ने उसे अपना पक्ष रखने के तहत पर्याप्त प्रक्रिया अपनाएं जाने की सलाह देते हुए इसकी इजाजत नहीं दी। 13 अगस्त 2008 की रात को हाईकोर्ट के वकील व उस समय हरियाणा के एडीशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल ने अपने मुंशी को जस्टिस निर्मल के यहां 15 लाख रुपये देने के लिए भेजा था। मुंशी ने गलती से यह राशि जस्टिस निर्मलजीत कौर के यहां पहुंचा दी। इस पर जस्टिस निर्मलजीत कौर के नौकर ने पुलिस में शिकायत कर दी थी।

भ्रष्टाचार 

Saturday, August 20, 2011

ओबीसी छात्रों को दस फीसदी कम अंकों पर मिलेगा प्रवेश


नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी छात्रों को सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंकों से अधिकतम दस फीसदी अंकों की ही छूट मिलेगी। यह फैसला सभी केंद्रीय विवि में लागू होगा। फैसले से साफ हो गया कि ओबीसी छात्रों को प्रवेश सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट आफ अंक से दस फीसदी कम अंक पर नहीं, बल्कि सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंक से दस फीसदी कम अंकों पर दिया जाएगा। विवाद यही था कि ओबीसी को प्रवेश में दी जाने वाली दस फीसदी अंकों की छूट सामान्य वर्ग के अंतिम कट आफ अंक से मानी जाए या न्यूनतम पात्रता अंक से? पीठ ने साफ किया कि संविधानपीठ के फैसले में प्रयोग कट आफ मा‌र्क्स शब्द का मतलब सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंकों से है। कोर्ट ने उदाहरण दिया कि अगर सामान्य वर्ग के लिए प्रवेश के न्यूनतम पात्रता अंक 50 हैं तो ओबीसी के लिए यह मानक 45 अंक हो सकता है। संस्थान 50 से 45 के बीच कोई भी अंक तय कर सकते हैं। इस फैसले का असर 2011-2012 सत्र के उन मामलों में नहीं पड़ेगा जहां सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट आफ अंक से दस फीसदी कम पर ओबीसी छात्रो को प्रवेश दिया जा चुका है और इस वर्ग की बाकी बची सीटें सामान्य वर्ग को आवंटित हो चुकी हैं, लेकिन जहां अभी ओबीसी की सीटें बची हैं उन पर ओबीसी को ही प्रवेश दिया जाएगा।

हाईकोर्ट ने मोदी से पूछा, क्यों नहीं नियुक्त हुआ लोकायुक्त


गुजरात में पिछले सात वर्षो से लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं करने का मामला मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के गले की फांस बन सकता है। हाईकोर्ट सरकार की ओर से लोकायुक्त का भरोसा दिलाए जाने के बावजूद एक साल से नियुक्ति नहीं करने पर नोटिस जारी कर दस दिन में जवाब देने को कहा है। नेता विपक्ष ने मोदी को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति मेहता को लोकायुक्त बनाने के लिए अपनी सहमति जताई है। गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को न्यायाधीश एआर मेहता को लोकायुक्त नियुक्त करने की सिफारिश की थी, राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अदालत को लोकायुक्त की जल्द नियुक्ति का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि इस संदर्भ में परामर्श की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सामाजिक कार्यकर्ता अमित जेठवा ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर गुजरात में लोकायुक्त नियुक्ति की मांग की थी। उनकी हत्या के बाद पिता भिखू भाई ने मामले को आगे बढ़ाते हुए बुधवार को एक और जनहित याचिका लगाई जिस पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश अकील कुरैशी तथा न्यायाधीश सोनिया गोकाणी की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी कर लोकायुक्त नियुक्त नहीं करने के कारण बताने को कहा है। याचिकाकर्ता के वकील विजय नागेश ने बताया कि न्यायालय ने 29 अगस्त को शपथपत्र पेश कर जवाब देने को कहा है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने कहा है कि जब मोदी सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं है तो वह लोकायुक्त की नियुक्ति से क्यों डर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि लोकायुक्त की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं होती। मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर राज्यपाल विपक्ष के नेता से चर्चा कर इसकी नियुक्ति करता है। इसके बावजूद मोदी बिना वजह इस प्रक्रिया में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं।



Tuesday, August 16, 2011

न्यायिक सक्रियता हमेशा से बहस का विषय: कपाडि़या


भारत और चीन दोनों ही उदीयमान शक्तियां हैं लेकिन जो चीज भारत को बीजिंग पर बढ़त दिला सकती है वह है उसकी कानून व्यवस्था। बांबे उच्च न्यायालय की स्थापना की 150वीं सालगिरह पर यहां रविवार को आयोजित एक कार्यक्रम में उपस्थित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण और केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने कही। हालांकि कार्यक्रम में उपस्थित सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाडि़या ने बड़े सधे हुए लहजे में न्यायिक सक्रियता का भी जिक्र किया। न्यायमूर्ति कपाडि़या ने कहा कि जब से बांबे उच्च न्यायालय अस्तित्व में आया है तब से लेकर अब तक न्यायिक सक्रियता और आलोचना बहस का विषय रहे हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चह्वाण ने कहा, भविष्य में भारत और चीन का समय होगा। हमारे देश को उसकी न्यायपालिका के जरिए बढ़त है। उनके सुर में सुर मिलाते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा, चीन और भारत के बीच लोग हमारी कानून व्यवस्था को तरजीह देंगे। खुर्शीद ने कहा, बांबे उच्च न्यायालय ने 1862 में अपने काम की शुरुआत की। बांबे उच्च न्यायालय हमारी न्यायिक स्वतंत्रता के प्रति वचनबद्धता का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। अब भी अनेक ऊंचाइयां छूनी बाकी हैं। और अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति, अधिक से अधिक आधारभूत संरचनाएं खड़ी करना और त्वरित तथा वहनीय न्याय देने की चुनौतियां हैं। न्यायपालिका को सहयोग देने का आह्वान करते हुए मुख्यमंत्री चह्वाण ने कहा, आतंकवाद, मौत की सजा, आपराधिक न्याय और इस जैसी अन्य चुनौतियों से कार्यकारियों द्वारा अकेले स्तर पर नहीं निपटा जा सकता है। इस अवसर पर न्यायमूर्ति कपाडि़या ने याचिकाओं के ऑनलाइन दाखिल करने की सुविधा का शुभारंभ किया। इससे याचिका दाखिल करने के लिए निश्चित घंटे होने के कारण लगी लंबी कतारों से छुट्टी मिलेगी।


Thursday, August 4, 2011

यूपी में एक और भू-अधिग्रहण रद


नई दिल्ली भू-अधिग्रहण के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फिर बड़ा झटका लगा है। इस बार भी अधिग्रहण में आपात उपबंध लगाना राज्य सरकार के गले की फांस बना। सुप्रीम कोर्ट ने ज्योतिबा फुले नगर में जिला जेल के निर्माण के लिए किया गया भू-अधिग्रहण बृहस्पतिवार को गलत ठहरा दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस अधिग्रहण को सही ठहराया था। भू-स्वामियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने हाईकोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया और अधिग्रहण को चुनौती देने वाली देवेंदर सिंह अन्य भू स्वामियों की याचिकाएं स्वीकार कर लीं। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का आपात उपबंध (धारा 17 (4)) लगाकर भूमि अधिग्रहण करना न्यायोचित नहीं है। याचिकाकर्ता भू-स्वामियों को आपत्ति उठाने के महत्वपूर्ण अधिकार (धारा 5-) से वंचित नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि ज्योतिबा फुले नगर जिला 1997 में बना था। बीच में यह जिला समाप्त हुआ और 2004 में इसका पुनर्गठन हुआ। ज्योतिबा फुले नगर के जिलाधिकारी ने 24 जनवरी 2003 को राज्य सरकार को जिला जेल के निर्माण के लिए भू-अधिग्रहण का प्रस्ताव भेजा, निसंदेह यह प्रस्ताव जनहित में था, लेकिन राज्य सरकार ने 5 साल बाद जिलाधिकारी से अधिग्रहण के लिए जमीन की उपलब्धता बताने को कहा। चयन समिति ने 2008 में ज्योतिबा फुले नगर की अमरोहा तहसील के दुल्हापुर संत प्रसाद गांव की 20.870 हैक्टेयर भूमि चिन्हित की, लेकिन राज्य सरकार ने भू-अधिग्रहण अधिसूचना निकालने में दो वर्ष का समय लगा दिया। पीठ ने कहा कि पूरा घटनाक्रम राज्य सरकार का ढीलाढाला रवैया पेश करता है। ऐसे में राज्य सरकार का आपात उपबंध लगाकर भू-स्वामियों का अधिग्रहण के खिलाफ आपत्ति उठाने का अधिकार छीनना न्यायोचित नहीं है। पीठ ने अपने पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ जनहित में भूमि अधिग्रहण करना,अधिग्रहण में आपात उपबंध लागू करने को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता। कोर्ट को इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए कि रिहायशी, औद्योगिक इंस्टीटयूशनल क्षेत्र विकसित करने की योजना बनने में सामान्यता कुछ सालों का समय लग जाता है। इसलिए जनहित की इन परियोजनाओं के जमीन अधिग्रहण में आपात उपबंध लगाना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। राज्य सरकार ने ज्योतिबा फुले नगर में जिला जेल बनाने के लिए गत वर्ष 5 मार्च को धारा 4 और 6 अगस्त 2010 को धारा छह की अधिसूचना निकाली। अधिग्रहण में आपात उपबंध का इस्तेमाल हुआ था। इसलिए भू-स्वामी अधिग्रहण के खिलाफ आपत्ति नहीं उठा सकते थे। भू-स्वामियों ने अधिग्रहण को हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन हाईकोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने जिला जेल के निर्माण के लिए किये गये अधिग्रहण को जनहित में और त्वरित महत्व का माना था।