Wednesday, May 23, 2012

आधी संपत्ति का हक

बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में हिंदू विवाह (संशोधन) विधेयक 2010 संबंधी संशोधन को मंजूरी दे दी गई जो पूरी तरह महिलाओं के हक में दिखता है। ताजा संशोधन के तहत अब तलाक की स्थिति में पत्नी पति की अचल आवासीय संपत्ति में आधी की हकदार होगी जिसके लिए वह तलाक के बाद आवेदन कर सकती है। तलाक की अर्जी के बाद सोच-विचार के लिए दिया जाने वाला छह माह का समय भी दोनों पक्षों की सहमति के बिना खत्म या कम नहीं किया जा सकता है। तलाक जैसे कानून पर किसी भी तरह के संशोधन की स्थिति में स्त्री के पक्ष से विचार किया जाना सबसे पहली शर्त होनी ही चाहिए क्योंकि जिस स्त्री स्वावलंबन की दुहाई देते हुए तलाक के नियमों को आसान बनाने की पैरवी हो रही है, समाज में वह प्रतिशत बहुत कम है। आज भी अधिसंख्य महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर निर्भर हैं। यही नहीं, कई मामलों में घर-परिवार में संतुलन बिठाने और बच्चों की परवरिश के नाम पर अनेक महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं। लिहाजा पति को आसानी से तलाक की सुविधा मुहैया करा दी जाएगी तो पुरुष वृत्ति के चलते वह एक के बाद एक तलाकशुदाओं की जमात खड़ी करने से नहीं हिचकेगा। इसके उलट तलाक के बाद पत्नी को आधी संपत्ति देने के नाम से ही अदालतों में तलाक के मामलों पर अंकुश लग जाएगा। महिला और बच्चों के आर्थिक सामाजिक हितों के मद्देनजर ही सरकार द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के नियम आसान नहीं रखे गये हैं। दोनों की सहमति के बिना पति-पत्नी कानूनी रूप से अलग नहीं हो सकते हैं। आर्थिक और सामाजिक उदारीकरण के इस दौर में अपवादों को छोड़कर हमारा सामाजिक ढांचा आज भी उस सीमारेखा को पार नहीं कर पाया है जहां तलाक लेने या पत्नी की मृत्यु के थोड़े दिनों बाद पुरुष दूसरा विवाह कर अपना सुख-चैन वापस पा लेता है जबकि पत्नी जीवनभर वैधव्य या तलाकशुदा का कलंक अपने माथे पर ढोती फिरती है। इस लिहाज से स्त्री की आर्थिक सुरक्षा सरकार की चिंता का विषय होना ही चाहिए और मौजूदा विधेयक में उसकी यह चिंता जाहिर हुई है। इस मामले में दूसरा पक्ष भी विचारणीय है कि आज क्योंकि पुरुष के समानांतर स्त्री भी आर्थिक स्वावलम्बन की डगर पर आगे बढ़ रही है लिहाजा वह पति का उस रूप में विरोध करने का माद्दा रखने लगी है जहां पुरुष होने के नाते वह सदियों से उस पर हावी रहा है। यही कारण है कि वैवाहिक रिश्तों में खटास इस कदर बढ़ती दिख रही है कि छोटे-मोटे झगड़ों में भी नौबत तलाक तक पहुंच जाती है। ऐसी पारिवारक स्थितियां भविष्य में एक पंगु समाज का ही निर्माण करेंगी लिहाजा माना जा रहा है कि यदि पति-पत्नी की सहमति है और उनका दांपत्य जीवन अब किसी भी रूप में पटरी पर नहीं आ सकता है तो दोनों का अलग हो जाना ही परिवार और समाज के हित में उचित है। इसी सोच के चलते सरकार हिंदू विवाह (संशोधन) विधेयक 2010 के तहत तलाक के कानून को थोड़ा लचीला बनाना चाहती है ताकि अदालतों में लंबित मामलों का निस्तारण हो सके और दो स्वतंत्र व्यक्तित्व अपनी तरह से जी सकें लेकिन लोकसभा में पारित उक्त संशोधन विधेयक गत तीन मई को राज्यसभा में विपक्ष और सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दलों के तीखे विरोध के कारण पारित नहीं हो सका था।