Saturday, July 14, 2012

कन्या भ्रूण हत्याओं में दिल्ली में किसी को नहीं मिली सजा


सरकार के बेटी बचाओ अभियान के बावजूद राजधानी में छह वर्ष तक की बेटियों की संख्या में कमी जारी है। दिल्ली में नए कानून की चर्चा हो रही है। आश्चर्य की बात है कि सफलता के शिखर तक पहुंचने के बाद आज भी लोग बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाया गया पीएनडीटी एक्ट दम तोड़ रहा है। कानून को धता बताकर लोग कन्या भ्रूण हत्या कर रहे हैं और कुछ डॉक्टर भी उनका साथ दे रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 17 साल में सिर्फ 55 लोगों को इस एक्ट के उल्लंघन का दोषी पाया गया है। 902 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं। दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग की पहल पर पिछले दो महीने में इस एक्ट के तहत एक दर्जन क्लीनिकों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं। सूत्रों की मानें तो एक्ट के उल्लंघन में 48 डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। लेकिन दिल्ली में आज तक किसी को भी सजा नहीं हुई है। कानून का नहीं हो पा रहा सदुपयोग : पीएनडीटी एक्ट विषय पर शोध कर रही मनीषा भल्ला का कहना है कि गर्भ में बेटियां कमजोर मानसिकता की शिकार हो रही हैं। आज ग्रामीण क्षेत्र से ज्यादा शहरों में यह देखा जा रहा है। बेटी की पढ़ाई-लिखाई में हो रहे खर्च के बीच दहेज की चिंता शहरी मां-बाप को ज्यादा अखर रहा है। शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं तो बढ़ी हैं और इसका नतीजा है कि कन्या भ्रूण हत्या में भी इजाफा देखा जा रहा है। एक्ट मजबूत है, लेकिन इसे लागू करने में सरकार चूक जाती है। केवल डॉक्टर दोषी नहीं : दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. हरीश गुप्ता का कहना है कि हमारी तरफ से सभी को सख्त हिदायत दी गई है, जो भी इसका उल्लंघन करता पाया जाएगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। भ्रूण हत्या के पीछे अल्ट्रासाउंड मशीन का बढ़ता प्रयोग मुख्य वजह है। विशेषज्ञ डॉक्टर ही इस मशीन का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन झोलाछाप डॉक्टर भी इसका प्रयोग कर रहे हैं। केवल डॉक्टरों को दोष देना उचित नहीं है। हम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ मिलकर बेटी बचाओ आंदोलन चला रहे हैं। हालांकि, आज तक एसोसिएशन की तरफ इस एक्ट का उल्लंघन करते हुए किसी डॉक्टर नहीं पकड़ा गया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. एके वालिया ने कहा कि दिल्ली सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सभी इंतजाम किए हैं। आरोपियों के खिलाफ कदम उठाए जा रहे हैं। कई मामलों में सरकार ने मुकदमे भी दर्ज किए हैं, लेकिन सरकारी कवायद से ज्यादा आम लोगों में भी यह जागरूकता जरूरी है कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता।

Thursday, July 5, 2012

तेजाब का दुरुपयोग रोकने पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब


सुप्री मकोर्ट ने तेजाब को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने, खासकर कथित व ठुकराए हुए प्रेमियों द्वारा युवतियों को इससे निशाना बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को गृह मंत्रालय से तेजाब बिक्री के नियमों को दुरुस्त करने के ठोस प्रयासों और प्रावधानों में बदलाव के संबंध में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा है, ताकि तेजाब आसानी से अपराधियों को न मिल सके। न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और एआर दवे की पीठ ने तेजाब हमले में बुरी तरह से जख्मी लक्ष्मी नामक लड़की की जनहित याचिका (2006 में दाखिल) पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। पीठ ने राज्य सरकारों व केंद्र शासित क्षेत्र के प्रशासकों से 11 फरवरी 2011 को जारी उस नोटिस का जवाब देने को कहा, जिसमें महिलाओं पर बढ़ते हमलों को रोकने के लिए तेजाब की बिक्री सीमित करने को कहा गया था। शीर्ष अदालत ने 29 अप्रैल 2012 को गृह मंत्रालय से कहा था कि वह राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों के समन्वय से तेजाब बिक्री के बारे में ठोस योजना तैयार करे। पीठ ने केंद्र और राज्यों से जानना चाहा कि क्या उन्होंने तेजाब हमले से पीडि़त के उपचार और पुनर्वास के लिए समुचित मुआवजे की कोई अनुकूल योजना तैयार की है। केंद्र ने पूर्व में अदालत को बताया था कि इस मामले में विधि आयोग की रिपोर्ट सभी संबंधित पक्षों व महिला आयोग को भेजी गई है, ताकि सबके मशविरे से तेजाब हमले को गंभीर अपराध घोषित करने का कानून बन सके। ज्ञात हो, लक्ष्मी ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर ऐसे मामले के निपटारे के लिए नया कानून बनाने या दंड संहिता, गवाह कानून और अपराध प्रक्रिया संहिता में संशोधन की मांग की है। याची का कहना है कि कानून ऐसा होना चाहिए जिसमें अपराधी को दंड और पीडि़त को मुआवजे की व्यवस्था हो। मालूम हो कि देश के विभिन्न राज्यों से युवतियों पर तेजाब फेंकने की घटना सुर्खियां बटोरती हैं। इसके खिलाफ फिलहाल कोई सख्त कानून नहीं होने के कारण आरोपी बेखौफ रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस पहल से इस मामले के पीड़तों में न्याय मिलने की आस एक बार फिर से जागेगी। अभी तो यह देखना है कि केंद्र और राज्य सरकारों का इसपर क्या रुख रहता है।