Tuesday, August 2, 2011

न्यायिक सक्रियता पर उठे सवाल


घपले-घोटाले की बयार और प्रशासनिक अक्षमता के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश देश के आम नागरिक को भले ही भा रहे हो, राजनीतिक दलों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। शीर्ष अदालत के हालिया फैसलों को कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के तौर पर देखे जाने के बीच सत्तापक्ष-विपक्ष ने सोमवार से शुरू होने वाले संसद के मॉनसून सत्र के दौरान न्यायिक सक्रियता पर चर्चा की जोरदार वकालत की है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, संविधान का आधार स्तंभ कही जाने वाली शक्तियों के बंटवारे की अवधारणा ऐसा मुद्दा है जो सभी संबद्ध लोगों के दिमाग को मंथ रही है। निश्चित तौर पर यह ऐसा मुद्दा है जिस पर चर्चा जरूरी है। भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कहा, विधायिका या कार्यपालिका की शक्तियां न्यायपालिका द्वारा लिए जाने का सवाल चिंताजनक है। भाजपा के एक वरिष्ठ सांसद ने एक कहा,कार्यपालिका के मामले में न्यायपालिका का अतिक्रमण चिंता का विषय है और इस पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। व्यवस्था का काम नहीं करना शायद अदालतों को हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। यह उचित नहीं है लेकिन ऐसा आम आदमी की बेबसी के कारण हो रहा है। भाजपा ने उच्चतम न्यायालय के उस हालिया फैसले पर चिंता जताई है, जिसमें नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में विशेष पुलिस अफसरों को हटाने कहा गया है। सलवा जुडूम और काला धन मामले में सुनाए गए फैसलों पर भी राजनैतिक दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और इसे न्यायिक अतिक्रमण कहा जा रहा है। संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल द्वारा बुलाई गई विभिन्न दलों के मुख्य सचेतकों की हालिया बैठक में यह मुद्दा बहुत जोर शोर से उठा था। संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा, मुख्य सचेतकों की बैठक में कुछ राजनैतिक दलों ने न्यायिक सक्रियता पर चर्चा की मांग की थी और इसे कुछ अन्य दलों से भी समर्थन मिला है। माकपा की वृंदा करात ने कहा, संवैधानिक व्यवस्था में हर संस्था का कार्य और भूमिका तय है। हालांकि पिछले कुछ समय में सरकार कई अहम मुद्दे हल करने में विफल रही, ऐसे में शीर्ष अदालत बीच में आई। यदि सरकार ने अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन किया होता तो यह हालात पैदा नहीं होते। उन्होंने यह भी कहा कि हर संवधानिक संस्था अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर सतर्क है। बीजद सांसद बी.महताब ने कहा, न्यायिक सक्रियता के मुद्दे पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। न्यायपालिका ने विभिन्न मुद्दों पर तमाम ऐसे फैसले दिए हैं, जिनसे पता चलता है कि वह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का उल्लघन कर रही है। उन्होंने जानना चाहा कि सरकार न्यायिक जिम्मेदारी विधेयक को संसद में पेश क्यों नहीं कर रही। कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, इस मुद्दे पर चर्चा की वकालत की। लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष और संसदविद् सोमनाथ चटर्जी ने तिहाड़ जेल में बंद सांसद सुरेश कलमाड़ी की मानसून सत्र में जाने की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट के रवैए को गलत बताते हुए कहा, राज्य सत्ता के हर अंग की लक्ष्मण रेखा तय है और किसी को भी इसका उल्लंघन नहीं करना चाहिए। हाईकोर्ट का रवैया संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिहाज से सकारात्मक नही है। चटर्जी ने कहा, बतौर लोकसभा अध्यक्ष अपने कार्यकाल में मैने सांसदों को दिल्ली में दुकानों और घरों को गिराने के विषय पर चर्चा का मौका दिया था, लेकिन सभी इतने डरे थे कि उन्होंने अदालतों की सराहना की। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, उन्होंने झारखंड विस में िश्वास मत के मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट के निर्देश का विरोध किया था। इसी प्रकार नोट के बदले वोट मामले में सांसदों को बर्खास्त करने के नोटिस का भी संज्ञान नहीं लिया, क्योंकि वह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। खुद वकील रहे चटर्जी हमेशा से इस बात के पक्षधर ने जाते रहे हैं कि संविधान का आधार तत्व अधिकारों के विभाजन में है। वहीं,भाकपा नेता डी राजा ने कलमाड़ी के मामले में अदालत की टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा है कि यह अदालत का अधिकार नहीं कि वह सांसद की सार्मथ्य और प्रदर्शन का आकलन करे। यह देश की जनता और राजनतिक दल तय करते हैं कि किस व्यक्ति का चयन करें। न्यायपालिका इस अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकती।




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