बच्चे को केवल जन्म देने से ही कोई उसका माता-पिता नहीं बन जाता। बच्चे को हर तरह की जिम्मेदारी के साथ उसका लालन-पालन करने का गुण ही हमें माता-पिता का दर्जा देता है। यह टिप्पणी करते हुए तीस हजारी कोर्ट के गार्जियन जज गौतम मनन ने एक 12 वर्षीय बच्ची की कस्टडी उसके जन्म देने वाले मां-बाप को देने से मना कर दिया। अदालत ने कहा कि बच्ची का अपने उन मां-बाप से भावनात्मक लगाव बहुत अधिक है, जिन्होंने उसे बचपन से पाला। अगर, बच्ची की कस्टडी उसके बायोलॉजिकल परिजनों को दी जाती है तो बच्ची के साथ यह अन्याय करना होगा। उल्लेखनीय है कि गीता कालोनी निवासी रीना व ललित (दोनों काल्पनिक नाम) ने एक 12 वर्षीय बच्ची की कस्टडी के लिये सब्जी मंडी रेलवे स्टेशन के पास रहने वाले सीमा और सुरेश (दोनों काल्पनिक नाम) के खिलाफ तीसहजारी कोर्ट में याचिका दायर की थी। अपनी याचिका में रीना का कहना था कि सीमा उसकी चचेरी बहन है। 7 दिसंबर 2000 को उन्हें एक बेटी पैदा हुई थी। उक्त बेटी को रखने के लिये सीमा ने इच्छा जाहिर की। जिसके चलते बेटी का बेहतर भविष्य देखते हुए उन्होंने जन्म के बाद ही बेटी को सीमा को दे दिया। वर्ष 2008 में उसकी मां और सीमा के पिता के बीच प्रापर्टी को लेकर विवाद हो गया। जिसके चलते सीमा ने उन्हें उनकी बेटी को तंग करने की धमकी दी। उन्होंने अपनी बेटी वापस मांगी तो सीमा व उसके पति सुरेश ने उनकी बेटी लौटाने से मना कर दिया। लिहाजा, उन्हें उनकी बेटी की कस्टडी दिलवाई जाये। उक्त मामले में सीमा ने अदालत को बताया कि रीना से उन्होंने बेटी गोद ली थी। उन्होंने बच्ची को अपनी बेटी की तरह पाला है और उसके लालन-पालन में किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी। रीना प्रापर्टी विवाद के झगड़े का बदला उनसे उनकी बेटी छीन कर लेना चाहती है। अदालत ने इस मामले में बच्ची से उसका पक्ष जाना। जिस पर बच्ची ने कहा कि सीमा व सुरेश ही उसके माता पिता है और वह उनके साथ खुश है। रीना व ललित को वह पहचानती तक नहीं। बच्ची का पक्ष जानने के बाद अदालत ने रीना की याचिका को खारिज कर दिया।
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