काले धन की जांच पर एसआइटी के गठन के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से असहज सरकार ने अदालत से फैसले की समीक्षा करने और उसे वापस लेने की अपील की है। इस संबंध में अदालत में दायर अपनी याचिका में सरकार ने दलील दी है कि यह आदेश कालेधन मामले में उसका रुख पूरी तरह सुने बगैर दिया गया। सरकार ने यह सफाई भी दी है कि काले धन के मामलों की जांच पर उसका रवैया सुस्त नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के साथ आदेश को वापस लेने वाली याचिका दायर करने का फैसला इसीलिए लिया है ताकि उसे अदालत में अपनी बात कहने का मौका मिल सके। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि पुनर्विचार याचिका की समीक्षा बंद चैंबर में होती है और वकीलों को भी हाजिर रहने की इजाजत नहीं होती। अब आदेश वापसी की याचिका की सुनवाई खुली अदालत में होगी। सरकार का मानना है कि चार जुलाई 2011 को जब काले धन से जुड़े मामलों की जांच के लिए एसआइटी के गठन की घोषणा सुप्रीम कोर्ट ने की थी उस वक्त सरकार अपना पक्ष अदालत के सामने नहीं रख पायी थी। सुप्रीमकोर्ट ने अपने आदेश में काले धन से जुड़े सभी मामलों जिनमें पुणे के घोड़ा व्यापारी हसन अली का मामला भी शामिल है, की जांच की रफ्तार धीमी रहने को लेकर सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी। सुप्रीम कोर्ट ने दो रिटायर्ड जजों वाली एसआइटी गठित करने के साथ ही सरकार को निर्देश दिया था कि वह सीबीडीटी चेयरमैन की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति को एसआइटी से जोड़े। केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि उस वक्त अदालत की खंडपीठ ने तत्कालीन सॉलीसिटर जनरल गोपाल सुब्रहमण्यम की दलीलों पर विचार नहीं किया जिनमें उन्होंने काले धन के मामलों की जांच के संबंध में केंद्र के उठाये कदमों का ब्यौरा दिया था। सूत्र बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला आज गृह और वित्त मंत्रालय के उच्चाधिकारियों की बैठक के बाद हुआ। बैठक में कानून मंत्रालय के अफसरों के साथ साथ अटार्नी जनरल जीई वाहनवती और अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल भी उपस्थित थे। सरकार ने अपनी याचिका में चार जुलाई को दिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले 20 पैराग्राफ पर आपत्तियां दर्ज करायी हैं जिनमें सरकार के कामकाज की कटु आलोचना की गयी थी।
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