Saturday, June 4, 2011

दया याचिकाओं पर 2009 में ही बदल गए नियम


मौत की सजा और आकस्मिक मामलों के निष्पादन की विधि पर कानून आयोग की 187वीं रिपोर्ट अभी आवश्यक कार्यवाही के लिए गृह मंत्रालय के पास लंबित है। इसके अलावा 81 ऐसी रिपोर्टे हैं जो क्रियान्वयन के लिए विभिन्न मंत्रालयों या विभागों के पास लंबित हैं। यही नहीं वर्ष 2009 से यह नियम हो गया है कि दया याचिका पर उसके दाखिल करने की नहीं बल्कि निचली अदालत के निर्णय की तिथि से फैसला किया जाएगा। इस बात की जानकारी विधि एवं कानून मंत्रालय ने एक आरटीआइ के जवाब में दी है। आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने 30 अप्रैल 2011 को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। इसके अलावा गृह मंत्रालय ने अपने 27 मई 2011 के जवाब में बताया कि अब तक कुल 19 दया याचिकाएं राष्ट्रपति के पास लंबित हैं। हालांकि एक बार दया याचिका की सिफारिश अथवा अस्वीकार कर राष्ट्रपति सचिवालय को भेजने के बाद गृह मंत्रालय क्या फिर से उसे वापस मंगा सकता है के सवाल पर गृह मंत्रालय ने सिर्फ इतना ही जवाब दिया कि भारतीय कानून के अनुच्छेद 72 के तहत सजा सुनाए गए व्यक्ति के परिजनों की ओर से दायर याचिका को गृह मंत्रालय भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है। गृह मंत्रालय ने उसने वर्ष 2009 में यह निर्णय लिया था कि समीक्षा के लिए राष्ट्रपति सचिवालय के पास दया याचिका के लंबित मामलों को एक एक कर इस मंत्रालय के पास भेजा जाएगा। हालांकि दया याचिकाओं को राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करने से पहले इस तरह के नियम/प्रक्रियाओं में क्या कभी कोई परिवर्तन किया गया के सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने नकारात्मक उत्तर दिया है, जबकि उसने अपने ही जवाब में कहा है कि वर्ष 2009 में लाए गए नियम के अनुसार, दया याचिका पर फैसला, दया याचिका के दायर करने की तिथि से नहीं बल्कि निचली अदालत के फैसले की तिथि से मानी जाएगी। इसके पीछे सरकार का यह उद्देश्य रहा है कि कोई भी गरीब नागरिक धन की किल्लत की वजह से उचित न्याय पाने से वंचित न रह जाए।

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