Wednesday, June 29, 2011

मुठभेड़ के नाम पर मनमानी नहीं कर सकती सेना


फर्जी मुठभेड़ मामलों में आपराधिक मुकदमों से सेना तथा अ‌र्द्धसैनिक बलों के जवानों को छूट पर केंद्र के पूरी तरह भिन्न विचारों से खफा सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को सरकार से विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम तथा अन्य कानूनों पर रुख स्पष्ट करने को कहा। अदालत ने कहा, आप यह नहीं कह सकते कि सेना का कोई जवान किसी घर में घुस सकता है, बलात्कार कर सकता है और कहे कि उसे छूट प्राप्त है क्योंकि उसने आधिकारिक काम करते हुए ऐसा किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह सख्त टिप्पणी फर्जी मुठभेड़ मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक भान की दलील सुनने के बाद दी। भान ने जम्मू कश्मीर तथा असम में सैन्यकर्मियों द्वारा मुठभेड़ में लोगों के मारे जाने के दो मामलों में अलग अलग विचार रखे थे। भाग ने 2004 में जम्मू कश्मीर के छत्तीसिंहपुरा मुठभेड़ मामले (सात युवकों को कथित मुठभेड़ में मारे जाने)के आरोपी राष्ट्रीय रायफल्स के जवानों पर मुकदमे की मांग की। वहीं असम के गोलाघाट इलाके में 1983 में सीआरपीएफ के जवानों द्वारा उल्फा आंतकियों के नाम पर छह लोगों को कथित रूप से कत्ल किए जाने के मामले में जवानों को छूट मिलने की दलील दी। पीठ ने कहा, आप एक ही प्रकृति के मामले में पूरी तरह अलग अलग रुख कैसे व्यक्त कर सकते हैं। इस पर भान ने पेशेवर जिम्मेदारियों की बाध्यता का हवाला देते हुए अदालत से दोनों मुद्दों को अलग करने तथा उन पर अलग अलग विचार करने का अनुरोध किया। बहरहाल पीठ ने कहा कि मामले में जनता से संबंधित कानून के सवाल जुड़े हुए हैं इसलिए अवकाश के बाद तत्काल इसे विस्तृत सुनवाई के लिए लिया जाएगा। शीर्ष अदालत ने दोनों मुद्दों पर केंद्र सरकार से दो सवालों का जवाब मांगा। इनमें पहला यह कि क्या सेना और अ‌र्द्धसैनिक बलों के जवानों को आधिकारिक जिम्मेदारियां निभाते वक्त किए गए किसी दंडात्मक कृत्य के लिहाज से कानूनों के तहत आपराधिक मुकदमे से छूट प्राप्त है, जिसमें फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार भी शामिल हैं। दूसरा, क्या सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को सेना और अ‌र्द्धसैनिक बलों के आरोपी जवान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले इस तरह की मुठभेड़ के मामलों में प्रारंभिक जांच करनी चाहिए।

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