Monday, November 28, 2011

टीएचडीसी करे 102 करोड़ रुपये का भुगतान : सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने टीएचडीसी को पुनर्वास से संबंधित कार्यो के लिए 102.99 करोड़ रुपये दो सप्ताह के अंदर राज्य सरकार को भुगतान करने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद ही टिहरी झील का स्तर आरएल 825 मीटर तक भरने की अनुमति मिलेगी। झील का स्तर आरएल 825 मीटर तक भरने के लिए कुछ अन्य शर्ते भी रखी गई हैं। टीएचडीसी टिहरी झील का स्तर 835 मीटर तक बढ़ाना चाहता है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक वाद पहले से ही चल रहा था। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और जिलाधिकारी टिहरी को टीएचडीसी की इच्छा के अनुसार झील का स्तर आरएल 835 मीटर तक बढ़ाने पर अपना पक्ष रखने को कहा था। 19 अक्टूबर 2011 को जिलाधिकारी टिहरी तथा टीएचडीसी के अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में टिहरी झील का स्तर आरएल 825 मीटर करने पर सहमति बन गई। इसके लिए कुछ शर्ते भी तय की गई। जैसे शासन की अनुमति के बिना झील का जल स्तर आरएल 825 मीटर से ऊपर नहीं बढ़ाया जा सकेगा। 30 जून 2011 को ऊर्जा सचिव भारत सरकार की अध्यक्षता में हुई बैठक में सहमति बनी थी कि पुनर्वास से संबंधित मदों पर टीएचडीसी राज्य को 102.99 करोड़ की धनराशि का भुगतान तत्काल करेगा। साथ ही टिहरी बांध का स्तर 825 मीटर तक बढ़ाए जाने पर इससे होने वाले किसी भी दुष्परिणाम या क्षति की संपूर्ण जिम्मेदारी टीएचडीसी की होगी। आरएल 825 मीटर तक जल भराव करने से पूर्व टीएचडीसी को पुनर्वास निदेशक, आयुक्त गढ़वाल और शासन को अवगत कराना होगा। इसके बावजूद टीएचडीसी इस बात पर अड़ा हुआ था कि जब आरएल 835 मीटर तक जल भराव की अनुमति नहीं मिलेगी, तब तक 102 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया जाएगा। इस बीच गत तीन नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में साफ कहा है कि राज्य सरकार ने अपने पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया है कि वह आरएल 825 मीटर तक जल भराव के लिए सहमत है। कोर्ट ने कहा है कि इसके एवज में टीएचडीसी दो सप्ताह के अंदर 102.99 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। टीएचडीसी ने 2010 के मानसून में झील का जल स्तर आरएल 832 मीटर तक भर दिया था। टीएचडीसी प्रबंधन ने यहां तक कहा था कि उसे सुप्रीम कोर्ट से आरएल 830 मीटर तक जल भराव की अनुमति मिल गई है, जो अभी तक नहीं मिल पाई है। जागरण ने इस मामले को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। झील का जल स्तर आरएल 832 मीटर तक भरने की वजह से प्रभावित क्षेत्र में जबरदस्त क्षति हुई थी। पचास हजार से अधिक आबादी इससे प्रभावित हुई थी। साथ ही मनेरी भाली फेज-दो में उत्पादन ठप हो गया था।

Friday, November 25, 2011

240 दिन से ऊपर काम तो पक्की करो नौकरी


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अस्थायी रूप से 240 दिन से अधिक काम करने वाला कर्मचारी पक्की नौकरी का हकदार हो जाता है। यह जरूरी नहीं कि 240 दिन की अवधि एक कलेंडर वर्ष में पूरी की गई हो। अगर 240 दिन की अवधि दो कलेंडर वर्ष है तो भी उसे स्थायी रोजगार देना पड़ेगा। जस्टिस अशोक कुमार गांगुली और जगदीश सिंह केहर की बेंच ने मैसूर स्टेट बैंक के कर्मचारी एचएस राजशेखर की याचिका स्वीकार करते हुए बैंक को उसे पक्की नौकरी पर रखने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि 240 दिन की गणना एक कलेंडर वर्ष में की जाती है। अदालत ने कहा कि बैंक और उसकी यूनियन के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते में साफतौर पर कहा गया है कि कलेंडर वर्ष के अलावा एक ब्लॉक में किए गए काम को भी 240 दिन की गणना करते समय मान्यता दी जाएगी। कलेंडर वर्ष और एक ब्लॉक के 12 महीने परिवर्तनीय हैं। कलेंडर वर्ष के अलावा 12
महीने के ब्लॉक में लगातार 240 दिन से ज्यादा अस्थायी नौकरी की गई है तो वह पक्की नौकरी का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को भी नकार दिया कि 240 दिन तक बैंक की एक ही शाखा में काम किया गया हो, तभी स्थायी नौकरी की अर्जी पर विचार किया जा सकता है। अदालत ने समानता के अधिकार के तहत भी राजशेखर के दावे को सही ठहराया। राजशेखर ने कहा कि उसके साथी देवराजू को स्थायी नौकरी दे दी गई जबकि उसकी अर्जी को बैंक ने खारिज कर दिया। देवराजू को भी 240 दिन के आधार पर अधीनस्थ स्टाफ में समायोजित कर लिया गया। कर्नाटक हाई कार्ट की एकल और खंडपीठ ने राजशेखर की याचिका खारिज कर दी थी। उसका दावा था कि वह बैंक में 1985 से काम कर रहा है। 1994-95 में उसने 292 दिन तक लगातार काम किया। उसके पास न्यूनतम शैक्षिक योग्यता है। बैंक के नियमों के अनुसार 240 दिन तक काम करने पर वह बैंक में स्थायी होने का हकदार है। स्टेट बैंक ऑफ मैसूर की कर्मचारी यूनियन भी उसे स्थायी करने की सिफारिश कर चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार पर गौर नहीं किया। याची ने अपने साथी को पक्की नौकरी का उदाहरण दिया जिसे समान आधार पर नौकरी दी गई थी। 1999 में भी याची ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने बैंक को उसकी अर्जी पर विचार करने का आदेश दिया था। अदालत के आदेश पर भी बैंक ने उसे स्थायी नौकरी पर रखने से इनकार कर दिया। उसके बाद याची ने फिर हाई कोर्ट में दस्तक दी। दो राउंड की याचिका में सही तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया गया। हाई कोर्ट ने माना कि राजशेखर ने लगातार 292 दिन तक काम किया और उसके साथी देवराजू को इसी आधार पर नौकरी दी गई। फिर भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई। बैंक के अपने नियमों के अनुसार भी वह स्थायी रोजगार का हकदार है। बैंक ने 1988 में यह नियम लागू किया था और इस संबंध में यूनियन से समझौता भी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्रमिक संबंधी मामलों में कलेंडर वर्ष और ब्लॉक के 12 महीने समान अर्थ रखते हैं। 12 महीनों के ब्लॉक में 240 दिन तक किया गया काम नियमों के तहत वैध है।

Thursday, November 17, 2011

आठ लोगों को फांसी 27 को उम्रकैद


मथुरा जिले के 20 साल पुराने मेहराना के चर्चित तिहरे हत्याकांड में आज एक स्थानीय अदालत ने आठ अभियुक्तों को फांसी तथा 27 को आजीवन कारावास की सजा सुनायी। अभियोजन पक्ष के अनुसार 27 मार्च 1991 को मथुरा जिले के बरसाना क्षेत्र में पंचायत के निर्णय के बाद ग्रामीणों ने एक युवती और दो युवकों को पेड़ पर लटकाकर फांसी दिये जाने के बाद उनके शव जला दिये थे। इस घटना में पुलिस ने 36 लोगों को नामजद करते हुए कुछ अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। चर्चित हत्याकांड में पुलिस ने 53 लोगों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। बीस साल तक चले इस मुकदमें की सुनवाई करते हुए अपर जिला सत्र न्यायाधीश एके उपाध्याय ने आठ आरोपियों को फांसी और 27 को आजीवन कारावास की सजा सुनायी। सभी अभियुक्त 60 साल से अधिक उम्र के हैं। मुकदमे के दौरान 13 अभियुक्तों की मौत हो गयी है। गौरतलब है कि मेहराना निवासी गंगाराम जाटव की पुत्री रोशनी 21मार्च 1991 को अचानक गायब हो गयी थी। मेहराम सिंह जाटव के पुत्र रामकिशन और श्याम सिंह जाटव के पुत्र विजेन्द्र सिंह पर लड़की भगाने का आरोप था। घटना के चार दिन बाद लड़की 24 मार्च को घर लौट आयी थी। लड़की के वापस आने पर 26 मार्च को गांव में पंचायत बुलायी गयी जिसमें रोशनी व दोनों युवकों को भी बुलाया गया था। पंचायत 27 मार्च तक चली। युवती ने पंचायत में कहा कि वह विजेन्द्र के साथ रहेगी। पंचायत ने तीनों को पेड़ पर उलटा लटका कर पीटने का फरमान जारी किया।
पंचायत के निर्णय के बाद ग्रामीणों ने तीनों को पेड़ से लटकाकर मारा पीटा और बाद में उन्हें फांसी पर लटका दिया। हत्या के बाद उनके शव जला दिये गये। न्यायालय ने तेज सिंह, बच्चू, तुलसीराम, कमल सिंह, राम सिंह, रमन सिंह, करन सिंह और सिरे को फांसी की सजा सुनायी है जबकि आजीवन कारावास की सजा पाने वालों में 95 वर्षीय नवल सिंह भी शामिल हैं। आजीवन कारावास पाने वाले अन्य लोगों में धन्नी, धर्मवीर, शिवचरन, सिंहराम, महेन्द्र, बल्ली, धर्मसिंह पुत्र कल्लू, जीवन, गिर्राज पुत्र गोविन्दा, मन्नी, सिरतो, गोपी, गिर्राज पुत्र कमल, काशी, चतर सिंह हरचन्द, मंगतूराम, सुन्दरलाल, धर्मसिंह पुत्र हरचन्दी, बाटो पुत्र भग्गो, प्रीतम, श्रीचन्द, दीपी उर्फ दीपचन्द, गंगाराम, हरी और लालसिंह शामिल हैं। इस घटना ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में उस समय भूचाल खड़ा कर दिया था। तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों और कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने घटना की निन्दा की थी।

Monday, October 24, 2011

मम्मी-पापा राजी, तभी आर्य समाज में शादी


हाईकोर्ट ने आर्य समाजी विवाह के इच्छुक युवक- युवतियों के लिए माता-पिता की स्वीकृति जरूरी करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि यदि युवक-युवती के माता-पिता की अनिच्छा के बाद भी यह विवाह संपन्न करवाया जाता है तो आर्य समाज मंदिर को इसके कारण रिकॉर्ड करने होंगे और माता-पिता के नहीं आने पर गवाह के तौर पर दोनों पक्षों के नजदीकी रिश्तेदार होने जरूरी होंगे। न्यायाधीश दलीप सिंह व न्यायाधीश एसएस कोठारी की खंडपीठ ने यह आदेश एक बंदी-प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान दिए। विवाह के प्रार्थना-पत्र पर दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों व आर्य समाज के सभासदों की संस्तुति होनी चाहिए। विवाह से पूर्व वर-वधू के माताप्िाता को छह दिन पूर्व नोटिस दिए जाने चाहिए। इसके साथ ही यह नोटिस कलक्ट्रेट, उपखंड कार्यालय, तहसील कार्यालय व संबंधित पुलिस थाने के नोटिस बोर्ड पर भी चस्पा किया जाना चाहिए। अदालत ने सभी जिला मजिस्ट्रेट को इसके लिए विशेष विवाह अधिनियम के समान ही एक प्रोफोर्मा बनाने को कहा है। वर-वधू के माता-पिता को भेजे जाने वाले नोटिस नजदीकी पुलिस थाने के जरिए ही भिजवाए जाएं। अदालत ने आर्य सार्वदेशिक महासभा को अपनी सभी राज्य व जिला स्तरीय संस्थाओं की समय-समय पर जांच करने की नीति बनाने व अदालत और रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी को सूचित करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने राजस्थान अनिवार्य विवाह रजिस्ट्रेशन एक्ट-2009 के प्रावधान के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए दोनों में से एक भी पक्ष की आयु 21 साल से कम होने पर उसके माता-पिता के आवेदन करने के नियम की पालना नहीं होने पर नाराजगी जताई है। कानूनी तौर पर इसकी इजाजत नहीं है। अदालत ने विवाह रजिस्ट्रार को कानून का पालन करने, हाईकोर्ट रजिस्ट्री को इस संबंध में प्रमुख सचिव गृह को सूचना देने व पूरे प्रदेश में अदालती आदेश का पालन करने को कहा है। मामले में अगली सुनवाई दो नवम्बर को होगी।

Friday, October 14, 2011

बिहार में शिक्षकों की भर्ती को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी


बिहार में वर्षो से लटका प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती का रास्ता साफ हो गया है। बृहस्पतिवार को सुप्रीमकोर्ट ने वरिष्ठता और रोस्टर से बनाई गई उम्मीदवारों की सूची स्वीकार कर ली और राज्य सरकार को भर्ती शुरू करने का निर्देश दिया। मालूम हो कि बिहार में 34540 प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती का मामला 2006 से लटका था। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर व न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने बिहार सरकार के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए ये निर्देश जारी किए। इससे पहले राज्य सरकार के वकील कैलाश वासुदेव, गोपाल सिंह व मनीष कुमार ने 1,23,000 उम्मीदवारों की वरिष्ठता और रोस्टर से तैयार सीलबंद सूची सुप्रीमकोर्ट में पेश की। राज्य सरकार की ओर से दिए गए ब्योरे मुताबिक 17270 अनारक्षित पद हैं। 345 अनुसूचित जनजाति। 5526 अनुसूचित जाति। 6217 बीसी वन। 4145 बीसी 21037 महिला पिछड़ा वर्ग के पदों को मिला कर कुल 34540 पद हैं। राज्य सरकार ने कोर्ट बताया कि शारीरिक शिक्षा में सिर्फ 1,084 शिक्षक चाहिए, जबकि उनके पास इस श्रेणी में 4972 उम्मीदवार हैं। उर्दू विषय के लिए 12,862 शिक्षक चाहिए, जबकि उनके पास सिर्फ 1509 शिक्षक हैं। ऐसे में राज्य सरकार को शारीरिक शिक्षा की श्रेणी में घटा कर उर्दू शिक्षक की श्रेणी में संख्या बढ़ाने की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने राज्य सरकार की यह मांग मान ली। इतना ही नहीं, कोर्ट ने भर्ती के समय दस्तावेजों की जांच में खामी पाये जाने पर राज्य सरकार को उचित कार्रवाई का भी अधिकार दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार का अनुरोध स्वीकार करते हुए यह भी कहा है कि जो उम्मीदवारों 31 जनवरी 2012 तक 60 वर्ष की आयु पूरी कर लेंगे उनकी नियुक्त नहीं की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा हिंदू महिला का संपत्ति में समान अधिकार


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सितम्बर 2005 के बाद बिना वसीयत के उत्तराधिकार की स्थिति में कोई भी बंटवारा होने पर हिंदू महिला या लड़की को अन्य पुरुष रिश्तेदारों के बराबर का संपत्ति अधिकार हासिल है। न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और जगदीश सिंह खेहर ने एक फैसले में कहा कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत बेटियां अन्य पुरुष सहोदरों के बराबर दायभाग अधिकार की हकदार हैं। संशोधन से पहले उन्हें यह अधिकार हासिल नहीं था। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला उत्तराधिकारी को न सिर्फ उत्तराधिकार का अधिकार होगा बल्कि पुरुष सदस्यों के साथ संपत्ति पर समान देनदारी भी होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि नई धारा 6 में संयुक्त हिंदू परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों को सहदायिक संपत्ति में नौ सितम्बर 2005 से समान अधिकार देने का प्रावधान है। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने अपने फैसले में कहा कि नई धारा छह के अनुसार किसी संपत्ति में सह समांशधारी (कोपार्सनर): की बेटी जन्म से ही उसी तरह अपने अधिकारों और देनदारियों से सह समांशधारी (कोपार्सनर) बन जाती है जैसे पुत्र। धारा छह में यह घोषणा की गई है कि सह समांशधारी की बेटी का सह समांशधारी संपत्ति में वही समान अधिकार और देनदारी होगी जो अगर वह बेटा होती तो उसे मिला होता। यह स्पष्ट है। सह समांशधारी शब्द संपत्ति में समान दायभाग अधिकार से संबंधित है। शीर्ष अदालत ने यह आदेश दिवंगत चकिरी वेंकट स्वामी की पुत्री गंडूरी कोटेरम्मा की ओर से दायर अपील को मंजूर करते हुए दिया। इसमें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें पुरुष सहोदरों के बराबर महिला को समान संपत्ति अधिकार को मान्यता नहीं दी गई थी।

Monday, October 3, 2011

मानसिक बीमारी पर मिल सकता है तलाक : कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पति या पत्नी में से किसी एक के भी मानसिक तौर पर बीमार होने पर दूसरा साथी तलाक पाने का अधिकारी है। जस्टिस पी सदाशिवम व जस्टिस बीएस चौहान की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 में कहा गया है कि पति या पत्नी में से किसी एक के पास भी अगर अपने इस दावे को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि उसका साथी मानसिक तौर पर बीमार है तो वह तलाक की मांग कर सकता है। कोर्ट ने पंकज महाजन नामक व्यक्ति की याचिका पर यह फैसला दिया। महाजन ने इस बात के पर्याप्त सबूत दिए थे कि उसकी पत्नी डिंपल शिजोफ्रेनिया से पीड़ित है और उसे प्रताड़ित करने के साथ आत्महत्या करने की भी धमकी देती है, इसके बाद भी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे तलाक लेने की अनुमति नहीं दी थी। महाजन ने इसी फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस सदाशिवम ने फैसला देते हुए कहा, ‘रिकॉर्ड में जो भी दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं, उनके माध्यम से अपीलकर्ता पति यह प्रदर्शित करने में सफल रहा है कि उसकी पत्नी मानसिक बीमारी शिजोफ्रेनिया से पीड़ित है। अपीलकर्ता पति की ओर से विभिन्न चिकित्सकों और दूसरे गवाहों ने साबित कर दिया है कि अपीलकर्ता की पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रस्त है।डिंपल के इलाज के दौरान महाजन को पता चला कि उसका शादी के पहले भी शिजोफ्रेनिया का इलाज चला था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 का दिया हवाला

Friday, September 30, 2011

9.50 लाख मामलों का बोझ पर जजों के 99 पद खाली


देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी से लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। इनमें सबसे बदतर हालात इलाहाबाद हाईकोर्ट के हैं जहां न्यायाधीशों के 160 पदों में से 99 खाली हैं। जबकि देश के सभी हाईकोर्टो में अटके कुल 40 लाख मामलों में एक चौथाई यहां लंबित पड़े हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने कानून मंत्रालय से सूचना के अधिकार कानून के जरिए यह जानकारी हासिल की है। इस जानकारी के अनुसार देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में जहां 40 लाख से भी अधिक मामले लंबित हैं, वहीं उच्च न्यायपालिका में 285 पद अभी भी खाली हैं। रिक्तियां न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या का 31 प्रतिशत है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक सितंबर तक न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 160 है, लेकिन सिर्फ 61 पदों पर नियुक्ति हुई है जो कुल संख्या का सिर्फ 38 प्रतिशत है। इनमें से भी सात न्यायाधीश 31 दिसंबर 2012 तक सेवानिवृत्त हो जाएंगे। गौरतलब है कि कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने पिछले साल कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में साढ़े नौ लाख से भी अधिक मामले लंबित हैं।इसके अलावा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय भी न्यायाधीशों की कमी से जूझ रहा है। यहां न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या 68 है, जबकि सिर्फ 43 न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है और 25 पद अभी भी खाली पड़े हैं। हिमाचल उच्च न्यायालय देश का एकमात्र उच्च न्यायालय है, जहां न्यायाधीशों के सभी 11 पदों पर नियुक्ति हो चुकी है। गुजरात उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पद 42 हैं, जिनमें से सिर्फ 24 पर नियुक्ति हुई है और अगले साल 31 दिसंबर तक पांच और न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने वाले हैं। आंध्र उच्च न्यायालय में भी न्यायाधीशों के कुल 49 पदों में से 16 पर नियुक्ति नहीं हुई है।

दो बच्चों से ज्यादा पर जुर्माने-जेल की सिफारिश वापस लेने का सवाल नहीं


दो बच्चों से ज्यादा होने पर 10000 जुर्माने और तीन माह जेल की सिफारिश करने वाले उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर ने विरोध के बावजूद अनुशंसाएं वापस लेने से इंकार कर दिया है। अय्यर ने कहा कि उनकी अध्यक्षता वाले आयोग की अनुशंसा के दो बच्चों के प्रावधान को वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। आयोग ने दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले परिवारों को सरकारी लाभों से वंचित करने का प्रावधान किया है। न्यायमूर्ति अय्यर ने कहा कि महिलाओं औरच्बच्चों के अधिकार एवं कल्याण को लेकर गठित राज्य आयोग को डरने की कोई जरूरत नहीं है। आयोग की अनुशंसा के मुताबिक गरीबी रेखा से नीचे की जिन लड़कियों की शादी 19 वर्ष की उम्र के बाद हो और 20 वर्ष की उम्र के बाद उन्हें पहला बच्चा हो, उन्हें 50 हजार रुपये नगद अनुदान दिया जाए। आयोग ने 90 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैध रूप से परिणय सूत्र में बंधने, इस संहिता के लागू होने के बाद पति-पत्नी को राज्य की ओर से मिलने वाले लाभों को प्राप्त करने की खातिर अपने बच्चों की संख्या दो रखनी होगी। कुछ ईसाई, मुस्लिम और हिंदू समुदायों ने इन अनुशंसाओं पर गंभीर आपत्ति जताई है। केरल कैथोलिक बिशप परिषद के अध्यक्ष आर्कबिशप एंड्रयूज थाजात का मानना है कि पति-पत्नी को निर्णय करना है कि वे कितने बच्चे चाहते हैं और ना तो राज्य सरकार और ना ही प्रशासन इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।

दुष्कर्म के दो दशक पुराने मामले में 269 दोषी करार


तमिलनाडु की सत्र अदालत ने दो दशक पुराने बहुचर्चित वचाती दुष्कर्म मामले में गुरुवार को एतिहासिक फैसला सुनाया। चंदन तस्कर वीरप्पन के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान वचाती जनजाति के लोगों के उत्पीड़न और सामूहिक दुष्कर्म के इस मामले में सभी 269 आरोपी सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया है। इनमें से 54 की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है। धर्मपुरी में जिला सत्र अदालत के जज एस कुमारगुरु ने 20 जून, 1992 के इस मामले में चार आइएफएस समेत वन विभाग के 126 कर्मचारी, 84 पुलिसकर्मी और आव्रजन विभाग के पांच कर्मचारियों को दोषी करार दिया है। इनमें से 17 को जनजाति समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया गया है। चार अधिकारियों को एससी-एसटी एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है। दुष्कर्म के 12 आरोपियों को 17 साल और पांच को सात साल कैद की सजा सुनाई गई है। अन्य को एक से तीन साल तक की सजा हुई है। अन्य पर लूटपाट, पद के दुरुपयोग, उत्पीड़न और गैर कानूनी तरीके से बंधक बनाने के मामले में सजा सुनाई गई है। सीबीआइ ने इस मामले में 269 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान 54 आरोपियों की मौत हो गई। फैसले के वक्त अदालत में कड़ी सुरक्षा की गई थी। आरोपों के मुताबिक 20 जून 1992 को पुलिसकर्मियों, वन और राजस्व अधिकारियों का एक समूह गांव पहुंचा। पूरे गांव के लोगों को एक लाइन में खड़ा कर पीटा गया। इनमें से 20 लड़कियों एवं महिलाओं को पास के जंगल में ले जाया गया जहां उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। आरोप है कि इस मामले में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने आरोपी अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं की। माकपा ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया। लंबी लड़ाई के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दिया जिसकी वजह से गुरुवार इन आरोपियों को दोषी ठहराया गया।

राष्ट्रपति ने अब तक सिर्फ तीन दया याचिकाएं ठुकराईं


राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने अपने अब तक के कार्यकाल में 13 दया याचिकाओं का निपटारा किया है। इनमें से सिर्फ तीन की सजा को बरकरार रखा, जबकि दस की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला। राष्ट्रपति सचिवालय के पास 19 दया याचिकाएं अभी भी लंबित हैं, जिसमें संसद हमले के दोषी मो.अफजल का मामला भी शामिल हैं। सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की आरटीआइ अर्जी से यह जानकारी सामने आई है। गृह मंत्रालय ने अग्रवाल को भेजे जवाब में कहा है कि राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने अपने चार साल दो माह के कार्यकाल (25 जुलाई 2007 से 20 सितंबर तक) में अभी तक 13 दया याचिकाओं का निपटारा किया है। इनमें से सिर्फ तीन को सजा माफी देने से मना किया है। पहला मामला असम के महेन्द्र नाथ दास का है, जिसने हत्या के मामले में जमानत मिलने के बाद एक और हत्या कर दी थी। दूसरा मामला खालिस्तानी आतंकी देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर का है, जिसने दिल्ली में बम विस्फोट कर नौ लोगों की हत्या कर दी थी। हमले में 29 अन्य लोग घायल भी हुए थे। राष्ट्रपति ने राजीव गाधी के हत्यारों मुरुगन, संथन और पेरारिवलन की दया याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है। महामहिम ने परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा पाए तमिलनाडु के गोविंदसामी, उत्तर प्रदेश में सामूहिक नरसंहार के दोषी श्याम मनोहर, शिवराम, प्रकाश, सुरेश, रविंद्र और हरीश, यूपी में ही एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के दोषी धर्मेद्र कुमार, नरेन्द्र यादव की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इसी प्रकार पंजाब में 17 लोगों की हत्या करने वाले पियारा सिंह, सरबजीत, गुरदेव और सतनाम सिंह, बिहार में आधा दर्जन के कत्ल के जिम्मेदार शोभित, तमिलनाडु में दस साल की बच्ची को अगवा करने के बाद मार डालने के दोषी मोहन गोपी, मध्य प्रदेश के स्कूली छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या करने वाले एम.राम और संतोष, महाराष्ट्र में दो लोगों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा पाए एस.बी. पिंगले की सजा को उम्रकैद में बदला।