Monday, October 24, 2011

मम्मी-पापा राजी, तभी आर्य समाज में शादी


हाईकोर्ट ने आर्य समाजी विवाह के इच्छुक युवक- युवतियों के लिए माता-पिता की स्वीकृति जरूरी करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि यदि युवक-युवती के माता-पिता की अनिच्छा के बाद भी यह विवाह संपन्न करवाया जाता है तो आर्य समाज मंदिर को इसके कारण रिकॉर्ड करने होंगे और माता-पिता के नहीं आने पर गवाह के तौर पर दोनों पक्षों के नजदीकी रिश्तेदार होने जरूरी होंगे। न्यायाधीश दलीप सिंह व न्यायाधीश एसएस कोठारी की खंडपीठ ने यह आदेश एक बंदी-प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान दिए। विवाह के प्रार्थना-पत्र पर दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों व आर्य समाज के सभासदों की संस्तुति होनी चाहिए। विवाह से पूर्व वर-वधू के माताप्िाता को छह दिन पूर्व नोटिस दिए जाने चाहिए। इसके साथ ही यह नोटिस कलक्ट्रेट, उपखंड कार्यालय, तहसील कार्यालय व संबंधित पुलिस थाने के नोटिस बोर्ड पर भी चस्पा किया जाना चाहिए। अदालत ने सभी जिला मजिस्ट्रेट को इसके लिए विशेष विवाह अधिनियम के समान ही एक प्रोफोर्मा बनाने को कहा है। वर-वधू के माता-पिता को भेजे जाने वाले नोटिस नजदीकी पुलिस थाने के जरिए ही भिजवाए जाएं। अदालत ने आर्य सार्वदेशिक महासभा को अपनी सभी राज्य व जिला स्तरीय संस्थाओं की समय-समय पर जांच करने की नीति बनाने व अदालत और रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी को सूचित करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने राजस्थान अनिवार्य विवाह रजिस्ट्रेशन एक्ट-2009 के प्रावधान के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए दोनों में से एक भी पक्ष की आयु 21 साल से कम होने पर उसके माता-पिता के आवेदन करने के नियम की पालना नहीं होने पर नाराजगी जताई है। कानूनी तौर पर इसकी इजाजत नहीं है। अदालत ने विवाह रजिस्ट्रार को कानून का पालन करने, हाईकोर्ट रजिस्ट्री को इस संबंध में प्रमुख सचिव गृह को सूचना देने व पूरे प्रदेश में अदालती आदेश का पालन करने को कहा है। मामले में अगली सुनवाई दो नवम्बर को होगी।

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