Friday, September 30, 2011

भुल्लर की दया याचिका पर आठ साल क्यों लगे


सुप्रीमकोर्ट ने फांसी की सजा पाए देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका के निपटारे में 8 साल का समय लगने पर सरकार से जवाब मांगा है। इतना ही नहीं, अदालत ने फांसी की सजा पर हो रही राजनीति पर भी कड़ी टिप्पणियां की। भुल्लर 1993 के दिल्ली बम विस्फोट का दोषी है, जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी। भुल्लर को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीमकोर्ट तक से सजा पर मुहर लगने के बाद भुल्लर ने 2003 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी, जो 25 मई 2011 को खारिज हो गई। भुल्लर ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर देरी के आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का अनुरोध किया है। भुल्लर का 13 दिसंबर 2010 से मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में इलाज चल रहा है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को भुल्लर की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एचपी रावल से कहा, सब जानना चाहते हैं कि 2003 से 2011 तक क्या हुआ। कोर्ट ने फांसी की सजा पर हो रही राजनीति पर तीखी टिप्पणियां करते हुए कहा,हम अपनी आंखें बंद कर लें, लेकिन दुर्भाग्य से अखबार पढ़ना नहीं बंद कर सकते। कुछ लोगों को समर्थन मिलता है, कुछ को नहीं। ये चीजें तब अहम हो जाती हैं जब दोषी को फांसी की सजा दी जाती है। कोर्ट ने कहा, वे सिर्फ संवैधानिक व कानूनी पहलू पर ही विचार कर सकते हैं। रावल ने कहा, देरी का कारण गृह मंत्रालय ही बता सकता है। भुल्लर की दया याचिका से संबंधित दस्तावेज गृह मंत्रालय को 27 मई 2003 को ही भेज दिये थे। मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को 30 मई 2011 को पत्र भेज कर भुल्लर की दया याचिका खारिज होने की जानकारी दी। वे मंत्रालय से बात कर अदालत में हलफनामा दाखिल करेंगे। पीठ ने उनका बयान रिकार्ड करते हुए 10 अक्टूबर तक हलफनामा पेश करने को कहा। साथ ही मामले की सुनवाई के लिए 19 अक्टूबर की तिथि तय कर दी। इससे पहले भुल्लर के वकील केटीएस तुलसी से कहा,दिल्ली सरकार ने हलफनामा पेश किया है, पर देरी की वजह नहीं बताई है।


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