Friday, May 6, 2011

कैसा हो दुष्कर्मियों के साथ सलूक


दिल्ली की एक अदालत ने बलात्कार के एक मामले पर फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की कि बलात्कारियों की सर्जिकल या फिर रासायनिक प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए उनका बधियाकरण कर दिया जाना चाहिए। जज ने इसमें आगे जोड़ते हुए यह भी कहा कि यह हमारे समय की मांग भी है। दरअसल, दिल्ली के सत्र न्यायालय में एक सौतेले पिता पर अपनी नाबालिग बेटी से बलात्कार का मामला साबित होने के बाद फैसला सुनाते हुए जज ने यह कठोर टिप्पणी की। जज ने कहा कि देश के कानून बनाने वाले कर्ताधर्ताओं को रेप के अपराधियों के लिए वैकल्पिक सजा के बारे में विचार करना चाहिए। जज ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा कि विशेष रूप से बच्चों और नाबालिगों के साथ दुष्कर्म करने वाले मुजरिमों को इस तरह की सजा देने के बारे में शिद्दत से विचार होना चाहिए। विद्वान न्यायाधीश ने अपनी इस टिप्पणी को देश के विधि मंत्रालय को भी भेजा है ताकि इस तरह के कानून बनाने के बारे में विचार के लिए एक आधार तैयार किया जा सके। सत्र न्यायाधीश की इस टिप्पणी से भारत में बलात्कारियों को शल्य क्रिया या फिर रासायनिक प्रक्रिया से नपुंसक बनाकर दंडित करने की सजा पर बहस छिड़ गई है। दरअसल, बलात्कारियों को बंध्याकरण जैसी सजा का विचार पूरे विश्व में कानून बनाने वालों को लगातार झकझोरता रहा है। पश्चिमी देशों में तो इस तरह की सजा पर लंबे समय से बहस चल रही है। सालों चली बहस के बाद कई देशों यूरोपीय और अमेरिकी देशों में तो इस तरह के कानून बने भी हैं। फिनलैंड, नॉर्वे और डेनमार्क में यौन शोषण करने वालों को शल्य क्रिया से नपुंसक बना देने की सजा का प्रावधान है। हालांकि कुछ विरोध के बाद डेनमार्क ने इसमें संशोधन करते हुए सर्जिकल बधियाकरण की जगह रासायनिक बधियाकरण के कानून को लागू किया है। इस तरह के कानून स्वीडन, कनाडा, इजराइल और अमेरिका के कई राज्यों में भी लागू हैं। कहीं ये सजा के तौर पर मान्यता प्राप्त हैं तो कहीं इन्हें वैकल्पिक सजा के तार पर इस्तेमाल किया जाता है। कुछ जगह बच्चों या नाबालिगों का यौन शोषण करने वालों के लिए ऐसी सजा मुकर्रर की जाती है। बच्चों का यौन शोषण करने वालों को इस तरह की सजा देने का प्रावधान तो अमेरिका और इंग्लैंड में भी है। अभी हाल ही में पोलैंड ने बच्चों के यौन शोषण करने वाले दरिंदों के लिए बधियाकरण को अनिवार्य बनाने के कानून को मंजूरी दी है। अब इस तरह की सजा की बात भारत में भी उठी है। जरूरत इस बात की है कि इस पर गंभीरता से विचार किया जाए। पक्ष और विपक्ष के अपने तर्क सामने आए। दरअसल, भारत में बलात्कार को लेकर अंग्रेजों के जमाने के बनाए कानून और सजाएं ही कायम हैं। हमारे देश के पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं और नाबालिग बच्चियों पर होने वाले इस जुल्म को गंभीरता से लेने की जरूरत सालों तक महसूस नहीं की गई। वर्ष 1983 में रेप के कानून में अहम बदलाव किया गया। उसके पहले तो जो भी महिला कहती थी कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, उसे ही यह साबित करना पड़ता था कि उसकी मर्जी के बगैर उसके साथ आरोपी ने जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए। इस तरह के बर्बर कानून इस देश में वर्षो तक चलते रहे। यह जानकार हैरानी होगी कि इस देश में यह जानने के लिए कि रेप की शिकार अविवाहित महिला सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं, अमर्यादित सलूक किया जाता है। जिस देश में इस तरह की व्यवस्था हो तो यह समझा जा सकता है कि देश के रहनुमा रेप की सजा और उसके पीडि़त को लेकर कितने गंभीर हैं। बच्चों और नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण को लेकर कोई सख्त कानून इस देश में अब भी नहीं हैं। हाल के दिनों में स्कूलों में बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं। इन बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून की आवश्यकता है। जब भी कोई ऐसी वारदात सामने आती है और मीडिया में इस पर हंगामा मचता है तो केंद्र सरकार चिंता जताती है, लेकिन फिर वह कुंभकर्णी नींद में सो जाती है। दिल्ली में एक कैब ड्राइवर की बच्चों के यौन शोषण का मामला हो या फिर कानपुर के एक स्कूल की बच्ची दिव्या के साथ दरिंदगी का मामला, सरकार हर बार इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए कठोर कानून बनाने का आश्र्वासन देती है। महिला और बाल विकास मंत्रालय चंद दिनों की सक्रियता के बाद अन्य कामों में मशरूफ हो जाता है। कुछ दिनों पहले मद्रास हाईकोर्ट ने एक फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर को चौथी कक्षा की छात्रा के साथ बलात्कार का दोषी पाया। कानून के मुताबिक उसे दस साल की सजा दी गई। सजा सुनाते वक्त मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने भी कहा था कि हमारे समाज में बच्चों की बढ़ती यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए एक बेहद ही कड़े कानून की आवश्यकता है, लेकिन बावजूद उसके अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस पहल भी नहीं हुई है। यौन शोषण या रेप के केस में अदालती कार्रवाई में होने वाली देरी और कानूनी उलझनों और पेचीदिगियों से मामला उलझ जाता है और कानून की खामियों का फायदा उठाकर आरोपी बच निकलते हैं। जरूरत इस बात की है कि बलात्कारियों को इस तरह की सजा देने का प्रावधान हो कि ताकि इस तरह के अपराध करने वालों के मन में एक डर व्याप्त हो। रेप या बलात्कार एक ऐसा घृणित अपराध है, जिसके लिए जितनी भी सजा दी जाए, वह कम है। बलात्कारियों को रासायनिक क्रिया से या फिर केमिकल के इस्तेमाल से नपुंसक बना ही दिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई दूसरा इस तरह के अपराध को अंजाम देने के बारे में सोचते हुए भी डरे। कई मानवाधिकार संगठन और कानून के जानकार बलात्कार के मुजरिम को नपुंसक बना देने की सजा का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह व्यक्ति विशेष के मानव अधिकारों का उल्लंघन है। इस सजा का विरोध करने वाले यह भूल जाते हैं कि रेप की शिकार लड़की या महिला और उसका पूरा परिवार समाज में जिस तरह की जिल्लत झेलता है, उसके बरक्स किसी भी तरह की सजा मानवाधिकार का उल्लंघन हो ही नहीं सकता है। क्या किसी महिला को यह अधिकार नहीं है कि वह समाज में इज्जत की जिंदगी जी सके। क्या उसे यह अधिकार नहीं है कि उसकी जिंदगी में जहर घोलने वाले भेडि़ए को सख्त से सख्त सजा मिले। कानून के चंद जानकार बलात्कारियों को बधियाकरण की सजा का विरोध इस आधार पर करते हैं कि हम एक सभ्य समाज में रहते हैं और किसी भी व्यक्ति को पशुओं जैसी सजा नहीं दी जा सकती है। यह तर्क देने वाले कहीं न कहीं यह भूल जाते हैं कि पशुओं का व्यवहार करने वाले बलात्कारियों को पशुओं जैसी सजा देने में कोई हर्ज भी नहीं है। कुछ समाज विज्ञानियों के विरोध का आधार वही है, जो सजा-ए-मौत देने के विरोध का आधार है। उनका मानना है कि सही सुरक्षा वयवस्था और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाकर ऐसे अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह बात एक हद तक सही हो सकती है कि न्यायिक प्रक्रिया में सुधार और तेजी से सुनवाई कर मुजरिमों को जल्द से जल्द सजा देने से अपराध पर लगाम लगाया जा सकता है, लेकिन जब तक कानून और सजा का भय नहीं होगा तो इसको रोकना लगभग नामुमकिन है। बधियाकरण एक ऐसी ही सजा है, जिसका खौफ अपराधियों को अंदर तक डरा सकता है और बलात्कार जैसे घृणित अपराध को अंजाम देने के पहले सौ बार सोचने को मजबूर कर देगा। इस तरह की सजा के लिए कानून में जल्द से जल्द संशोधन किया जाए और बधियाकरण की सजा को उसमें शामिल किया जाए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


No comments:

Post a Comment