Thursday, May 19, 2011

सूचना देने से मना नहीं कर सकता सुप्रीम कोर्ट


केंद्रीय सूचना आयोग का कहना है कि आरटीआइ कानून के तहत मांगी गई जानकारी को देने से सुप्रीम कोर्ट इंकार नहीं कर सकता है। अपने पूर्व के आदेश को पलटते हुए आयोग ने यह नई व्यवस्था दी है। आयोग के मुताबिक आरटीआइ के तहत सूचना देने के लिए शीर्ष न्यायालय बाध्य है, चाहे आवेदक के पास अदालत के नियमों के तहत सूचना पाने के अन्य विकल्प क्यों न हों। पहले कई मामलों में तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने व्यवस्था दी कि यदि किसी संगठन में सूचना मुहैया कराने के लिए कोई कानून और नियम है तो सूचना मांगने वाले को उनका उपयोग करना चाहिए, कि सूचना का अधिकार अधिनियम का। सुप्रीम कोर्ट की इस बारे में दलील को स्वीकार करते हुए हबीबुल्ला ने कहा था कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 22 के अनुसार, वर्तमान कानूनों पर पारदर्शी आरटीआइ कानून तब ही प्रभावी होगा जब दोनों कानून के बीच भिन्नता हो। आरटीआइ के तहत सूचना देने में असमर्थता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को बताया था कि उसके नियमों के तहत न्यायिक प्रक्रिया और दस्तावेजों के बारे में सूचना मुहैया कराने के लिए पहले से ही व्यवस्था है तो ऐसे में आरटीआइ के तहत जानकारी नहीं दी जा सकती। दोनों कानून में कोई भिन्नता नहीं है। वजाहत हबीबुल्ला तो शीर्ष न्यायालय की इस दलील से सहमत थे, लेकिन मौजूदा सूचना आयुक्त शैलेश गांधी इस तर्क से सहमत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की दलीलों को खारिज करते हुए सूचना आयुक्त गांधी ने कहा है कि यह आयोग तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त के पूर्व के फैसले से सम्मानपूर्वक असहमति जताता है। आयोग का अब मानना है कि सुप्रीम कोर्ट आरटीआइ अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना देने से इंकार नहीं कर सकता है। गांधी के अनुसार, आरटीआइ अधिनियम के अस्तित्व में आने के पहले से ही सूचना मुहैया कराने के कई उपाय हों तो भी नागरिक सूचना हासिल करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग कर सकता है। उन्होंने कहा कि उस व्यवस्था का चयन करना नागरिक का विशेषाधिकार है जिसके तहत उसे सूचना चाहिए। यह मामला आरटीआइ आवेदक आरएस मिश्र से संबंधित है। मिश्र ने आरटीआइ के प्रावधानों के तहत नौ सवालों पर कोर्ट से जानकारी चाही थी लेकिन उन्हें सूचना देने से इंकार कर दिया गया था। कोर्ट ने उन्हें सलाह दी थी कि वह अपेक्षित दस्तावेजों के लिए उसके नियमों के अनुसार आवेदन करें। गांधी ने कहा कि आयोग यह स्पष्ट करना चाहेगा कि जिस तरह कोर्ट के नियमों को न्यायालय ने लागू किया है और उन्हें रद नहीं किया जा सकता, उसी तरह सूचना का अधिकार अधिनियम संसद ने पारित किया है और उसे निलंबित नहीं किया जा सकता।


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