Saturday, May 7, 2011

पारिवारिक अदालत कानून की वैधता की समीक्षा होगी


उच्चतम न्यायालय ने पारिवारिक अदालत कानून और औद्योगिक विवाद कानून की धाराओं की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने का फैसला किया है। इन कानूनों के प्रावधान के तहत पीडि़त व्यक्तियों को वकीलों की सहायता लेने से वंचित कर दिया गया है। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती से जवाब मांगा और प्रख्यात विधिवेत्ता फाली एस नरीमन को इस मामले में न्यायालय की सहायता करने के लिए नियुक्त किया। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा मत है कि श्रम अदालत-औद्योगिक न्यायाधिकरण में वकीलों को पेश होने से रोकने वाला औद्योगिक विवाद कानून का यह प्रावधान असंवैधानिक है क्योंकि यह भारतीय संविधान के अचुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 19जी (कोई भी पेशा अपनाने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। न्यायालय ने कहा कि औद्योगिक कानून इतना जटिल हो गया है कि एक आम आदमी संभवत: अपने मामले को श्रम अदालत या औद्योगिक न्यायाधिकरण में ढंग से पेश नहीं कर पाता। पीठ ने कहा, इसी प्रकार पारिवारिक अदालत कानून 1984 की धारा वकीलों को पारिवारिक अदालतों के समक्ष पेश करने से वंचित करती है। प्रथम दृष्टया हमें प्रतीत होता है कि यह प्रावधान भी गैर संवैधानिक है क्योंकि पारिवारिक कानून इतना जटिल है कि एक आम आदमी पारिवारिक अदालत के समक्ष अपना मामला संभवत: ढंग से नहीं रख पाएगा। शीर्ष न्यायालय ने यह आदेश हाइजेनिक फूड्स द्वारा दायर अपील पर दिया। इस अपील में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी कि कामगार की सहमति और अदालत की इजाजत के बिना वकील श्रम अदालत -औद्योगिक न्यायाधिकरण में पेश नहीं हो सकता। उच्च न्यायालय ने इसके पीछे औद्योगिक विवाद कानून की धारा 36(4) का हवाला दिया। उच्चतम न्यायालय ने नरीमन की सहायता के लिए एक अन्य वरिष्ठ वकील फखरूद्दीन को भी नियुक्त किया।


No comments:

Post a Comment