Tuesday, December 7, 2010

न्याय के बोझ से टूटती आम आदमी की कमर

एक आंकड़े के मुताबिक भारत की विभिन्न न्यायालयों में इस समय ३५० करोड़ मुकदमें लंबित है . एक अनुमान के मुताबिक इन सभी मुकदमों के निपटारे में ३५० वर्ष से अधिक लगेंगे . सीधा सा मतलब है एक व्यक्ति द्वारा मुक़दमे का फैसला उसकी पांचवी या छठी पीढ़ी में आने की संभावना है . इसका दूसरा पहलू यह है कि एक मुक़दमे से केवल एक व्यक्ति ही परेशान नहीं होता, उसके  पूरे परिवार को मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है, आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है और इन सबके तले आम आदमी की कमर पर इतना बोझ पड़ जाता है कि वह अपने और अपने परिवार के विकास के बारे में सोच भी नही पाता

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