केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि देश की विभिन्न अदालतों में गंगा सफाई परियोजनाओं से जुड़े मुकदमों के शीघ्र निपटारे के आदेश दिए जाएं। लंबित मुकदमों के कारण न सिर्फ गंगा सफाई परियोजनाएं पूरी करने में देरी हो रही है, बल्कि उनकी लागत भी बढ़ रही है। केंद्र सरकार ने यह अनुरोध सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में किया है। सरकार ने गंगा नदी की सफाई की स्थिति और परियोजनाओं से जुड़े अन्य अदालतों के लंबित मुकदमों के बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में कहा है कि गंगा क्षेत्र वाले राज्यों में भूमि अधिग्रहण में हो रही देरी, जमीन पर अवैध कब्जे, करार विवाद और मुकदमेबाजी के कारण परियोजनाएं लटकी हैं। इससे देरी के अलावा लागत भी बढ़ती जा रही है। इसके अलावा विभिन्न उच्च न्यायालयों में भी जनहित याचिकाएं लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट संबंधित उच्च न्यायालयों को गंगा परियोजनाओं से जुड़े मुकदमों के शीघ्र निपटारे का आदेश दे, ताकि राज्य सरकारें परियोजनाओं को जल्दी लागू कर सकें। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल मोहन जैन बताते हैं कि केंद्र सरकार ने 1400 करोड़ रुपये का कोष सिर्फ गंगा की सफाई के लिए रखा है लेकिन विभिन्न अदालतों में मामला लंबित होने के कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हो रही है। गंगा एक्शन प्लान से संबंधित दो मुकदमे तो सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निपटाए हैं, लेकिन अन्य अदालतों में लंबित मुकदमे भी निपटने चाहिए। अदालतों में लंबित मुकदमों के ब्योरे के मुताबिक गंगा नदी का प्रदूषण दूर करने और गंगा एक्शन प्लान के दूसरे चरण के मुद्दों को उठाने वाले चार मुकदमे इलाहबाद हाईकोर्ट में लंबित हैं। पटना हाईकोर्ट में भी एक जनहित याचिका लंबित है, जिसमें बिहार सरकार को गंगा नदी प्राधिकरण बनाने और नदी का प्रदूषण समाप्त कर न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित किए जाने का आदेश देने की मांग की गई है। इसके अलावा उत्तराखंड में भी गंगा से जुड़े चार मुकदमे लंबित हैं, जिनमें एक उत्तरकाशी की जिला अदालत में और तीन हरिद्वार की जिला अदालत में हंै। जबकि उत्तराखंड हाईकोर्ट में लंबित मुक़दमे का गत जून में निस्तारण हो चूका है।
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