Wednesday, December 29, 2010

इस वर्ष हायर जुडिशियरी में भ्रष्टाचार रहा बड़ा मुद्दा

एक ठहराव के बाद न्यायिक सक्रियता लगभग पूरे साल एक फिर अपने चरम पर रही। लेकिन इस बार निशाने पर खुद न्यायपालिका थी। हायर जुडिशियरी में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा। पहली बार खुद सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि हायर जुडिशियरी में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार एक गंभीर बीमारी का रूप अख्तियार कर चुका है। वहीं जनहित याचिकाओं की सार्थकता पर न्यायपालिका अपने ही अंर्तद्वंद्व में फंसी रही। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। लेकिन अवमानना की तलवार के भय से इस विषय पर सार्वजनिक टिप्पणी करना खतरे से खाली नहीं था। न्यायपालिका ने खुद आगे आकर स्वीकार किया कि भ्रष्टाचार न्यायपालिका की दहलीज पार कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट की स्वीकारोक्ति न्यायपालिका में स्वच्छता लाने की आस रखने वाले लोगों के लिए एक आशा की किरण है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ जजों पर उंगली उठाकर उच्चतर न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नए सिरे से बहस शुरू की। भ्रष्टाचार को लेकर न्यायपालिका में एक अरसे उंगली उठती रही है लेकिन निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का हवाला देकर इसे खारिज कर दिया जाता था। जजों की नियुक्ति में पार्रदशिता भी एक मुद्दा बना रहा। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति पूरी तरह न्यायपालिका के हाथ में है। पिछले लगभग 17 साल से चली आ रही इस चयन प्रक्रिया पर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं। जजों के चयन में सरकार की भूमिका न होने के बावजूद कॉलेजियम न्यायाधीशों के खाली पद भरने में नाकाम रहा है। इस कारण अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट के कुछ जजों को सुप्रीम कोर्ट पदोन्नत न करने पर चयन मंडल की विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त किया गया। जस्टिस दिनाकरन को पदोन्नत करने और जस्टिस एपी शाह को सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से वंचित करने पर न्यायविदों ने भी अपनी आपत्ति र्दज कराई। जाने-माने कानूनविद शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले 16 चीफ जस्टिसों में से आठ को भ्रष्ट करार देकर करप्शन पर हमला तेज किया। उनकी बात को समाज के बहुत बड़े र्वग का र्समथन मिला। न्यायिक सक्रियता को लेकर अदालत में दो अलग-अलग विचारधाराएं उभर कर सामने आईं। एक र्वग न्यायिक सक्रियता को उचित ठहराता है। वह सरकार की जवाबदेही के लिए अदालत को एक उचित फोरम मानता है। सक्रियता की वकालत करने वाले जजों ने अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो या अनाज की र्बबादी। अदालत के आदेशों से सरकार की नींद हराम हुई। लेकिन न्यायपालिका का एक र्वग जनहित याचिकाओं की सार्थकता पर सवाल उठाता रहा। कई जजों ने जनहित याचिकाओं को अदालती समय की र्बबादी तक कह डाला। जनहित याचिकाओं का विरोध करने वाले र्वग का मत है कि सरकार की नीतियों पर अदालतों को दखल देने का अधिकार नहीं है। संविधान में चेक एंड बैलेंसेज की अवधारणा को नए साल में और गति मिलने की संभावना है।
साल के र्चचित फैसले
अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के साठ साल पुराने मामले पर फैसला र्सवाधिक र्चचित रहा। अदालत के फैसले से एक टकराव टल गया। जजमेंट पर बहस हुई और मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
संविधान पीठ के कई फैसले भी महत्वपूर्ण रहे। नारको टेस्ट को मानवाधिकार की कसौटी पर रखकर सुप्रीम कोर्ट ने वैज्ञानिक जांच को नए सिरे से परिभाषित किया।
जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का मसला संविधान पीठ को सौंप दिया गया।
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन को हरी झंडी देकर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल भावना को बुलंद किया।
स्ट्रीट हॉगिंग को भी मौलिक अधिकार बताकर न्यायपालिका ने समाज के निचले तबके को भारी राहत दी।
गोदामों के अंदर और बाहर रखा अनाज सड़ने पर अदालत ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
दिल्ली के दो र्चचित हत्याकांडों, जेसिका लाल और प्रिर्यदशनी मट्टू के हत्यारों को उम्रकैद की सजा सुनाकर अदालत ने यह संदेश दिया कि कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो, कानून सबसे ऊपर है।

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