Wednesday, July 6, 2011

गरीबों को खदेड़ रहीं सरकारें


 सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की भू अधिग्रहण नीति पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकारें इसे दमन यंत्र की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। किसानों से जमीन लेकर बिल्डरों को दिए जाने पर एतराज जताते हुए कोर्ट ने यहां तक कहा कि आखिर भू स्वामियों को क्या मिला? सिवाय मुकदमेबाजी और लाठियां। पुरुष जेल गए और महिलाओं से दु‌र्व्यवहार हुआ। कोर्ट ने ये तीखी टिप्पणियां ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिग्रहण के एक मामले में सुनवाई के दौरान कीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रेटर नोएडा के सहबरी गांव की भूमि का अधिग्रहण निरस्त कर दिया था। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और बिल्डरों ने सुप्रीमकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व एके गांगुली की पीठ ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान सरकार की भू अधिग्रहण नीति को जनविरोधी कहा और आपात उपबंध के गलत इस्तेमाल पर भी उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी खिंचाई की। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि विकास के नाम पर वह क्या कर रही है? किसानों की खेतिहर जमीन मल्टीप्लेक्स और मॉल आदि बनाने के लिए अधिग्रहीत की जा रही है, जो आम आदमी की पहंुच से दूर हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार नहर, पुल आदि बनाने के लिए जमीन अधिग्रहीत करती तो समझ आता, लेकिन यहां जो जमीन मॉल, होटल और टाउनशिप के लिए ली गई है। सरकार और बिल्डर दलील दे रहे हैं कि यह रिहायशी एरिया जरूरतमंदों के लिए विकसित किया जा रहा है। बिल्डरों के ब्रोशरों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा स्पॉ, स्विमिंग पूल, आयुर्वेदिक मसाज, हेल्थ क्लब वाले ये फ्लैट क्या गरीबों के लिए बन रहे हैं? जिनकी जमीने ली गई हैं क्या वे इन्हें ले पाएंगे? पीठ ने कहा कि अन्य राज्यों में भी यही है। राज्य सरकारें गरीबों को खदेड़ रही हैं। वे कुटिल अभियान चला रही हैं और जनविरोधी काम कर रही हैं। कोर्ट ने कहा कि जमीन किसान की मां होती है। एक किसान से जमीन लेने पर सिर्फ उसी के जीवन यापन का साधन नहीं जाता, बल्कि उसकी पांच पीढि़यों की रोजी रोटी जाती है और उसे उसके बदले क्या मिलता है- थोड़ा सा मुआवजा, जिसे वह मुकदमेबाजी में खर्च करता है। बिल्डरों के वकीलों ने दलील दी कि ज्यादातर भू स्वामियों ने मुआवजा ले लिया है तो कोर्ट ने कहा कि अगर वे मुआवजा नहीं लेते तो उनके पास और क्या विकल्प था? सरकारें उनकी जमीनें हड़प कर उन्हें गुलाम बना रहीं हैं। यह ग्लोबलाइजेशन नहीं, मार्जिनलाइजेशन है। सरकार किसानों को हाशिये पर डाल रही है। कोर्ट ने जब यूपी सरकार से आपात उपबंध लगाकर भू स्वामियों से आपत्ति का हक छीनने पर सवाल किया तो सरकार का जवाब था कि कालोनाइजर गैरकानूनी ढंग से भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े बेंच रहे थे। अगर आपात उपबंध लगा कर जमीन न ली जाती तो ग्रेटर नोएडा में भी दिल्ली की तरह अवैध कालोनी बन जाती। पीठ ने सरकार के जवाब पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वह गैरकानूनी जमीन स्थानांतरण को दूसरे तरीके से रोक सकती थी। राज्य सरकार अपनी प्रशासनिक अक्षमता को इससे नहीं ढक सकती। सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर यह गैरकानूनी काम नहीं हो सकता। बिल्डरों से दस हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से कीमत ली गई और भू स्वामियों को मात्र आठ सौ रुपये वर्गगज से मुआवजा दिया गया। यह ठीक है कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह जीवन के अधिकार के तहत आता है। बहस कल भी जारी रहेगी। वैसे पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाने जा रही। 

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