Saturday, July 9, 2011

न्यायाधीशों को सही संदेश

अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग का रास्ता साफ कर दिया है। अब राज्यसभा जस्टिस दिनाकरन के खिलाफ आरोपों पर सुनवाई करेगी और अपनी सफाई में जस्टिस दिनाकरन या उनके वकील को सदन के सामने हाजिर होना पड़ेगा। यह एक लंबे अर्से बाद किसी जज के खिलाफ कार्रवाई का प्रयास है। इससे पहले जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ संसद ने महाभियोग का प्रस्ताव सुना था। लोकसभा में इसकी सुनवाई हुई थी। बाद में बहुमत से जज को बरी कर दिया गया था। अब जस्टिस दिनाकरन के मामले में राज्यसभा के 50 से अधिक सांसदों ने सभापति को शिकायती पत्र दिया था, जिस पर एक पैनल बनाया गया था और उस पैनल ने महाभियोग की सुनवाई के लिए सिफारिश की है। इसके खिलाफ जस्टिस दिनाकरन सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें कोई राहत नहीं दी। अब उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचा है सिर्फ इस बात के कि वह राज्यसभा के सामने पेश हों। उम्मीद है कि अगस्त में संसद के मानसून सत्र के दौरान उन्हें राज्यसभा के सामने हाजिर होने के लिए कहा जा सकता है। उसके बाद सदन तय करेगा कि महाभियोग के लिए उनके आरोप सही पाए गए या नहीं। इसी तरह जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ भी राज्यसभा की कमेटी ने आरोप सही पाए हैं और उन्हें किसी भी समय राज्यसभा में महाभियोग के लिए तलब किया जा सकता है। इस मामले में जस्टिस दिनाकरन ने जिद पकड़ ली थी और इस्तीफा देने से मना कर दिया था। हारकर सांसदों ने उनकी शिकायत की और अब उनके महाभियोग की नौबत आ गई। न्यायपालिका को साफ-सुथरा रखने के लिए अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि जो गलत जज हैं उनके खिलाफ जल्दी से जल्दी कार्रवाई हो और कार्रवाई की प्रक्रिया को सरल बना दिया जाए। 64 साल में सिर्फ तीन जजों पर महाभियोग का मामला बन पाना उचित नहीं है। देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसएच कपाडि़या इस मामले में बहुत सख्त हैं और उन्होंने भ्रष्ट जजों के खिलाफ कमर कस रखी है। कपाडि़या के बाद अगले चीफ जस्टिस के रूप में आ रहे अल्तमस कबीर भी बहुत सख्त माने जाते हैं। जिला और तहसील स्तर पर तो भ्रष्ट जजों और मजिस्ट्रेटों की भरमार है। जिला स्तर पर अच्छे जजों को पहल करके भ्रष्ट जजों की शिकायत करनी चाहिए और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को विश्वास में लेकर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। इससे जिला स्तर पर न्यायपालिका में सुधार आएगा। यदि किसी जिला अदालत में अच्छी साख वाले वकील और जज गलत लोगों के खिलाफ अभियान छेड़ दें तो न्याय व्यवस्था में काफी सुधार आ सकता है। पहले यह समस्या सिर्फ जिला और तहसील स्तर पर थी, लेकिन धीरे-धीरे उच्च न्यायालयों में भी फैल गई। हद तो तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों के खिलाफ शिकायतें आईं। सर्वोच्च न्यायालय स्तर पर अच्छे जजों ने गड़बड़ जजों के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया और सरकार को भी उनके खिलाफ कार्रवाई करने की छूट दी। अब तो एक ऐसा कानून आ रहा है जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी जज के खिलाफ शिकायत कर सकेगा। उस शिकायत की जांच मुख्य न्यायाधीश करवाएंगे और शिकायत सही पाई जाने पर उन्हें कड़ी सजा मिलेगी। उम्मीद है कि जल्दी ही इस मामले में भारतीय न्यायिक परिषद का गठन हो जाएगा। इस परिषद में भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम जज और देश के दो उच्च न्यायालयों के सबसे वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश होंगे। यह परिषद मोटे तौर पर सुप्रीम कोर्ट और देश के विभिन्न हाईकोटरें के जजों के बारे में शिकायत सुनेगी और उनकी जांच करेगी। जांच के दौरान संबंधित जज के अदालत में बैठने पर रोक लग जाएगी। यदि किसी जज के विरुद्ध संगीन मामले हैं और पचास संसद सदस्य दस्तख्त करके उसके खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति को देते हैं तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति उस जज को संसद के सामने बुलाकर उसका ट्रायल करेंगे। यह प्रक्रिया भी कुछ लंबी है। परिषद के तरफ से ही शिकायत की अच्छी तरह से जांच करा लेनी चाहिए और यदि शिकायत सही पाई जाती है तो परिषद को ही उस जज को हटाने का अधिकार दिया जाना चाहिए। सिर्फ उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के जजों का मामला संसद के सामने लाया जाना चाहिए, इससे भ्रष्ट जजों को हटाने की प्रक्रिया सरल हो जाएगी। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी राज्य स्तर पर एक परिषद बनानी चाहिए जिसमें कुछ जजों के अलावा प्रदेश सरकार का विधि सचिव हो। वह जिला स्तर के न्यायाधीश की जांच करके उन्हें हटाने का निर्णय कर सकती है। इस तरह से न्यायपालिका को काफी साफ-सुथरा बनाया जा सकता है। (लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं).

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