Tuesday, July 12, 2011

सशस्त्र बल कानून पर फैसला कुछ महीनों में


सेना ने सोमवार को कहा कि अगले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा हालात आ‌र्म्स फोर्सेस स्पेशल पॉवर्स एक्ट (अफास्पा) खत्म करने को लेकर उसके और राज्य सरकार के बीच चल रही बातचीत का भविष्य तय करेंगे। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर जम्मू-कश्मीर सरकार और सैन्य प्रतिनिधियों के बीच महीनों से वार्ता चल रही है। विवादित अफास्पा कानून को खत्म किए जाने को लेकर राज्य सरकार, मानवाधिकार संगठन ने भी एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। जम्मू-कश्मीर के वार्ताकारों ने भी इस पर पुनर्विचार किए जाने की सिफारिश की है। हालांकि सेना का तर्क है कि अफास्पा को हटाए जाने से घाटी में घुसपैठ और हिंसा की घटनाओं में तेजी आ सकती है। बडगाम जिले के बीरवार इलाके में संवाददाताओं से बातचीत में सेना की 15वीं कोर के जनरल आफीसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल एसए हसनैन ने कहा कि सेना ने अफास्पा को लेकर अपनी मंशा से सरकार को अवगत करा दिया है। पिछले साल घाटी में हुई हिंसक घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने अफास्पा को खत्म किए जाने पर विचार करने के लिए दो समितियों का गठन किया था। जम्मू और कश्मीर में तैनात सेना की टुकडियों के कमांडर इन समितियों के सदस्य हैं। हसनैन ने कहा कि सीमा पार तमाम आतंकी संगठन अभी भी सक्रिय हैं और अगले दो महीने में आतंकियों द्वारा घुसपैठ की कोशिशों में भारी इजाफा होने की आशंका है। सैन्य अधिकारी ने कहा कि विचार विमर्श की प्रक्रिया जारी है और अगले कुछ महीनों तक लगातार शांति निश्चित तौर पर एक अहम कारक होगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न स्थानों पर सेना के चेकप्वाइंट आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनाए गए हैं और आम नागरिकों को परेशान करना इसका मकसद कतई नहीं है। कट्टरपंथी हुर्रियत नेता सैय्यद अली शाह गिलानी की हालिया प्रकाशित पुस्तक को खरीदने के बारे में पूछे जाने पर हसनैन ने कहा कि इसमें किसी को भी विवाद में घसीटा नहीं जाना चाहिए। एक पेशेवर होने के नाते, अलहदा सोच रखने वाले लोगों की भावनाओं को समझना बेहद जरूरी है, चाहे हम उनसे इत्तफाक रखते हों या नहीं।


पृष्ठ संख्या 06, दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण), 12 जुलाई, 2011

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