Thursday, July 28, 2011

खून भले खौले लेकिन आरक्षण कड़वा सच


सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य श्रेणी के छात्रों को नसीहत देते हुए कहा कि शैक्षिक संस्थानों और नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण कड़वा सच है। आरक्षण को लेकर सामान्य श्रेणी के छात्रों का खून भले ही खौलता हो, लेकिन उन्हें इसे समझना चाहिए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी छात्रों के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने में कट ऑफ मार्क का मतलब स्पष्ट करने की दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की पीठ ने बुधवार को यह टिप्पणी की। इसके साथ ही पीठ ने मामले को प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाडिया को कानून में कट-ऑफ शब्द के इस्तेमाल पर भ्रम को दूर करने के लिए उचित पीठ का गठन करने के लिए सौंप दिया। अदालत ने कहा,हम जानते हैं कि सामान्य श्रेणी के छात्र क्या महसूस करते हैं। हमें पता हैं कि जब कम अंक वाले (आरक्षित श्रेणी के) छात्रों को दाखिला लेते वे देखते होंगे तो उनका खून खौलता होगा, लेकिन उन्होंने जानना चाहिए कि आरक्षण कटु यथार्थ है। उन्हें इसे समझना चाहिए। हम गैर बराबर लोगों के साथ बराबर जैसा बर्ताव नहीं कर सकते। अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब सुनवाई के दौरान आरक्षण विरोधी समूह के एक वकील ने दलील दी कि अगर आरक्षित श्रेणी में दाखिला लेने वाले छात्रों की गुणवत्ता पर अंकुश लगाए बिना आंख मूंदकर आरक्षण लागू होगा, तो शिक्षा का स्तर गिरेगा। इस टिप्पणी के अलावा पीठ में शामिल न्यायमूर्ति रवींद्रन ने अधिवक्ता पीपी राव की टिप्पणी से नाराज होकर खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। राव ने कहा था कि पीठ में न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी को भी शामिल होना चाहिए, क्योंकि मुद्दा उनके दिए गए फैसले की व्याख्या का है। इससे नाराज रवींद्रन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का हर न्यायाधीश किसी भी फैसले की व्याख्या कर सकता है। यहां ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है कि जिसका फैसला हो वही न्यायाधीश उसकी व्याख्या करेगा। फैसला सुप्रीम कोर्ट का होता है किसी न्यायाधीश का नहीं। उन्होंने आगे सुनवाई से इंकार करते हुए कहा कि वह सेवानिवृत होने वाले हैं और वह किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते। हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने राव की दलील का विरोध किया था और पीठ से सुनवाई जारी रखने का आग्रह किया था। मद्रास आइआइटी के सेवानिवृत निदेशक पीवी इंद्रेशन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर रखी है। अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से कट ऑफ मार्क का मतलब स्पष्ट करने का अनुरोध किया गया है। कहा गया है कि जेएनयू में ओबीसी छात्रों को प्रवेश देने में दस फीसदी की छूट का मानक क्या होगा। यह मानक सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट ऑफ मार्क से दस फीसदी कम होगा या फिर सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित पात्रता अंकों से दस फीसदी कम। केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में ओबीसी कोटे का आरक्षण सही ठहराने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ में शामिल न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी ने अपने फैसले में कहा था कि सामान्य वर्ग के कट ऑफ मार्क से दस नंबर कम पर ओबीसी को प्रवेश दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में आजकल इसी दस फीसदी कट ऑफ के मानक पर बहस चल रही थी|

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