Friday, April 1, 2011

जातिसूचक शब्द के प्रयोग पर कार्रवाई नहीं


जाति सूचक शब्द के जरिए अपमानित करने वाली भाषा का प्रयोग जनता के सामने हो तभी एफआईआर दर्ज की जा सकती है कानून में साफतौर पर कहा गया है कि अगर गैर-एससी,एसटी जाति का व्यक्ति जानबूझकर दलित को अपमानित करने के मकसद से जनता के बीच जातिसूचक भाषा का इस्तेमाल करता है तभी उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति कानून के तहत अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जरूरी है कि जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल दलित व्यक्ति की उपस्थिति में उसके सामने किया गया हो। अगर उसकी गैर- हाजिरी में कोई जातिसूचक शब्दों से उसका अपमान करने की कोशिश करता है तो ऐसी सूरत में एससी, एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती। जाति सूचक शब्द के जरिए अपमानित करने वाली भाषा का प्रयोग जनता के सामने हो तभी एफआईआर दर्ज की जा सकती है। किसी के निवास स्थान पर इस तरह की घटना भी कानूनी कार्रवाई के काबिल नहीं है। जस्टिस दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने हैदराबाद के एक स्कूल की प्रिंसपल की याचिका पर यह फैसला सुनाया। हैदराबाद पुलिस ने प्रधानाध्यापिका असमथुनिसा और उसके पति मोहम्मद समीउद्दीन के खिलाफ अनुसूचित जाति- जनजाति निवारण अधिनियम की धारा तीन के तहत 2006 में एफआईआर दर्ज की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून में साफतौर पर कहा गया है कि अगर गैर-एससी, एसटी जाति का व्यक्ति जानबूझकर दलित को अपमानित करने के मकसद से जनता के बीच जातिसूचक भाषा का इस्तेमाल करता है तभी उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असथुनिसा के पति समीउद्दीन ने अपने पड़ोसी को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करने की कोशिश की। घटना उसके घर में हुई। उस समय वह घर में नहीं था। उसकी पत्नी श्रीदेवी के सामने समीउद्दीन ने जाति का इस्तेमाल किया। बेंच का मत था कि पुलिस में लिखाई रिपोर्ट को अगर सच भी मान लिया जाए तो भी असथुनिसा के खिलाफ एससी, एसटी एक्ट के तहत मुकदमा नहीं चल सकता। जात-पात की बात उसके पति ने की थी न कि असथुनिसा ने। कथित वारदात के समय पति के साथ खड़े रहने से पत्नी के खिलाफ केस नहीं बनता। पुलिस ने इस बात की तफ्तीश भी नहीं की कि जातिबरादरी का नाम लेकर टिप्पणी करने वाला किस जाति का है। कानून के अनुसार एससी, एसटी जाति के व्यक्ति के खिलाफ इस कानून के तहत मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता, भले ही उसने जातिसूचक शब्दों से किसी को अपमानित किया हो। बेंच ने कहा कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट को एफआईआर रद्द करने का आदेश दे देना चाहिए था। एससी,एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने के मौलिक तत्व मौजूद न होने पर कथित अभियुक्तों के खिलाफ पहली नजर में किसी तरह का सबूत नहीं है।


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