Friday, April 22, 2011

स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के प्रतिकूल है एहतियातन हिरासत


सुप्रीम कोर्ट ने निवारक निरोध यानी एहतियातन हिरासत (प्रीवेंशन डिटेंशन) पर ऐतिहासिक व्यवस्था देते हुए कहा है कि यह संविधान प्रदत्त नागरिकों के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के प्रतिकूल है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के सामान्य कानून संदिग्ध अपराधियों के विरुद्घ कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त हैं और निवारक निरोध में लिए जाने जैसे कदम अस्वीकार्य हैं, क्योंकि इसमें बिना उचित मुआवजे के नागरिकों को जेल में रखा जाता है। न्यायमूर्ति मरकडेय काटजू, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र और न्यायमूर्ति एमएस निज्जर की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि निरोधात्मक हिरासत संबंधी कानून का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह स्वतंत्रता संबंधी नागरिकों के मूल अधिकार के खिलाफ है। इस कानून के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को अदालती सुनवाई के बगैर, उसका गुनाह बताए बिना हिरासत में लिया जा सकता है या उसे गिरफ्तार किया जाता है। हमारे देश में इसका अस्तित्व ब्रिटिश शासनकाल से ही है। स्वतंत्र भारत में भी इसे अपना लिया गया।

दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति व्यवस्था बनाए रखने के आधार पर किसी भी व्यक्ति को बिना कोई आरोप लगाए तीन महीने तक हिरासत में रखने का प्रावधान है। पीठ ने कहा, ‘एहतियातन हिरासत अपनी प्रकृति से लोकतांत्रिक विचारों के विरुद्घ और विधि के शासन के लिए अभिशाप है। युद्घकाल को छोड़कर अमेरिका और इंग्लैंड में इस तरह का कोई कानून नहीं है।न्यायमूर्ति काटजू ने अपने फैसले में कहा, ‘चूंकि संविधान का अनुच्छेद 22 एहतियातन हिरासत में लेने की अनुमति देता है, इसलिए हम इसे अवैध नहीं ठहरा सकते, लेकिन एहतियातन हिरासत में लेने की शक्ति को बेहद संकीर्ण सीमा में कैद करना होगा अन्यथा हम संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता के महती अधिकार को छीनेंगे, जिसे लंबे कठिन और ऐतिहासिक संघर्ष से जीता गया है।पीठ ने यह टिप्पणी उपयोग की अवधि समाप्त हो चुकी दवाओं को बेचने के आरोपी रामकृष्णन की पत्नी रेखा की ओर से दायर अपील को बरकरार रखते हुए की। रेखा ने याचिका में तमिलनाडु सरकार द्वारा पति को एहतियातन हिरासत में रखने को चुनौती दी थी।

पीठ ने कहा कि प्रिवेंटिव डिटेंशन जैसा कानून यूएसए और इंग्लैंड में नहीं है। यह सही है कि संविधान के अनुच्छेद-22 (3) (बी) में प्रिवेंटिव डिटेंशन का प्रावधान है, हम उस पर टिप्पणी नहीं कर रहे, लेकिन हमें यह तय करना होगा कि इसके तहत दिए गए अधिकार को सीमित किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत दिए गए व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दूर चला जाएगा। 

ज्ञातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 3 से 7 परंतुकों या अपवाद खंडों के रूप में हैं और वे किसी कानून के अधीन निवारक निरोध के मामलों में लागू होते हैं। परिभाषा के अनुसार निवारक निरोध किसी गैर-कानूनी कार्य को रोकने के लिए होता है, न कि किसी गैर-कानूनी कार्य हेतु किसी व्यक्ति को दंड देने के लिए। अनुच्छेद 22 संसद को निवारक निरोध का उपबंध करने वाला ऐसा कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसमें यह निर्धारित किया गया हो कि किसी व्यक्ति को किन परिस्थितियों में, किस वर्ग के मामलों में, अधिक से अधिक कितनी अवधि के लिए निरुद्घ किया जा सकता है। उसमें सलाहकार बोर्ड की स्थापना और उसकी प्रक्रिया भी शामिल है। टी. देवकी बनाम तमिलनाडु सरकार में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि यदि राज्य सरकार संतुष्ट हो कि किन्हीं शराब, मादक द्रव्यों अथवा वन संपदा के तस्करों, गुंडों, अनैतिक व्यवहार में लगे अपराधियों अथवा झुग्गी-झोपड़ियों की जमीन हथियाने वालों को कानून और व्यवस्था में व्यवधान न डालने देने के लिए बंदी बनाना जरूरी है तो उसके आदेश दे सकती है। निवारक निरोध के अधिकार के संभावित दुरुपयोग के विरुद्घ संरक्षण के रूप में कतिपय उपायों का उपबंध किया गया है। अत: निवारक निरोध को तीन महीने से अधिक अवधि के लिए विधि द्वारा अधिकृत नहीं किया जा सकता, जबतक कि सलाहकार बोर्ड उसके लिए पर्याप्त कारण नहीं देखता। 

संसद ने निवारक निरोध अधिनियम, 1950 पारित किया था, जो भारत में निवारक निरोध की विधि गठित करता था। यह एक अस्थाई अधिनियम था, जो प्रारंभ में केवल एक वर्ष केलिए ही था। तबसे इस अधिनियम की अवधि अनेक बार बढ़ाई गई। यह 1969 केसाथ ही समाप्त हो गया। जब पुन: अराजकतावादी तत्वों ने जोर पकड़ा तो आंतरिक सुरक्षा अधिनियम नाम से एक नया अधिनियम 1971 में बनाया गया। इसके उपबंध मोटे तौर पर निवारक निरोध अधिनियम, 1950 के समान ही थे। 1974 में संसद ने विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारण अधिनियम, 1974 पारित किया। यह 1971 के अधिनियम का आर्थिक अपराधों के लिए अनुपूरक था। आंतरिक सुरक्षा अधिनियम, विध्वंसात्मक कार्यो के विरुद्ध था। 1974 के अधिनियम का उद्देश्य तस्करी, विदेशी मुद्रा में छल आदि असामाजिक कार्य रोकना था। 1978 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम निरासित कर दिया गया, किंतु 1974 का अधिनियम विमान है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 और चोर बाजारी निवारण और आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम, 1980 बनाकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह शक्ति सौंपी गई|

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