Wednesday, April 6, 2011

जजों की नियुक्ति के मामले की समीक्षा होगी


जजों की नियुक्ति में न्यायापालिका के एकाधिकार पर सरकार द्वारा सवाल खड़ा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करने का फैसला किया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम (निर्णायक मंडल) ही शीर्ष न्यायालय और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति करता है। सरकार के एतराज के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कॉलेजियम प्रणाली की वैधता पर बृहद पीठ द्वारा विचार के लिए दस सवाल तैयार किए। केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति में न्यायपालिका के एकाधिकार पर सोमवार को सवाल उठाया था। सरकार ने मांग की थी कि वह 1993 में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए उस फैसले की समीक्षा करे, जिसके तहत जजों की नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका को कार्यपालिका पर तरजीह दी गई थी। इस पर न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की विशेष पीठ ने पूरे मामले को मुख्य न्यायाधीश को सौंप दिया था ताकि वह इस पर बृहत पीठ में विचार कराएं। दोनों जजों की पीठ ने इस बारे में मंगलवार को विस्तार से आदेश पारित किया। जिसके तहत अदालत ने बृहत पीठ के विचार के लिए दस सवाल तैयार किए ताकि कॉलेजियम प्रणाली की वैधानिक की जांच हो सके। विशेष पीठ ने बृहत पीठ से इस तथ्य पर नए सिरे से विचार करने की अपेक्षा की है कि क्या अकेले न्यायपालिका को जजों की नियुक्ति करने का अधिकार है|
ये हैं विशेष पीठ के सवाल 1-क्या 1993 में शीर्ष न्यायालय की 7 सदस्यीय पीठ और 1998 में नौ सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया फैसला संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुरूप है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित है? 2-क्या कॉलेजियम प्रणाली के जरिए जजों की नियुक्ति का संविधान में कोई प्रावधान है? 3-क्या न्यायिक फैसले से संविधान में संशोधन किया जा सकता है? 4-क्या संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के आपसी विचार-विमर्श और रजामंदी के बाद ही जजों की नियुक्ति की जा सकती है अथवा अकेले न्यायपालिका ही जजों की नियुक्ति कर सकती है? 5-क्या सलाह का आशय सहमति से है? 6-क्या न्यायिक व्याख्या के जरिए संविधान में लिखे गए शब्दों को व्यर्थ बनाया जा सकता है जैसा कि उपरोक्त फैसलों में किया गया लगता है। जिसने शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की नियुक्ति में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से मंत्रणा को व्यर्थ बना दिया। जबकि संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में स्पष्ट शब्दों इसकी अनुमति है? 7-क्या अनुच्छच्ेद 124(2) की स्पष्ट भाषा को न्यायिक फैसले के जरिए बदला जा सकता है? 8-क्या ऐसी कोई परंपरा है कि राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं और क्या यह परंपरा 124(2) की स्पष्ट मंशा पर प्रभावी हो सकती है? 9-क्या जजों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की राय को प्रधानता हासिल है और क्या ऐसी नियुक्तियों को बृहत पीठ रद कर सकती है? क्या है कॉलेजियम प्रणाली मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में जजों का वह पैनल ही कॉलेजियम (निर्णायक मंडल) कहलाता है जो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे एस वर्मा की अगुवाई वाली पीठ ने ही 1993 में फैसला सुनाते हुए जजों की नियुक्ति के मामले में कार्यपालिका पर न्यायपालिका को तरजीह दी थी। उसके बाद से ही जजों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली से होने लगी|

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