Friday, April 22, 2011

खापों की खैरियत नहीं


देश की सबसे बड़ी अदालत ने खाप पंचायतों की दादागीरी पर लगाम लगाने का ऐतिहासिक फैसला लेकर तमाम मासूमों की जान बचा ली है। सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग को बर्बर बताते हुए, इनको सख्ती से बन्द करने का आदेश दिया है। जस्टिस माकर्डेय काटजू और ज्ञानसुधा मिश्रा की खंडपीठ ने इनको अवैध बताया और कहा कि इस ज्यादती को रोकने में विफल रहने वाले प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया जाए। 1500 वर्षो से पारंपरिक रूप से चली आ रही ये पंचायतें जाति व धर्म की आड़ में युवा प्रेमी जोड़ों को जान से मारने या ऐसी धमकी देने के लिए अकसर र्चचा में आती रही हैं। सरकारें अब तक इनके इन वीभत्स कारनामों पर मौन साधे रही हैं, क्योंकि उनको अपना वोट बैंक ज्यादा प्यारा है। बेंच के इस फैसले का असर सीधे युवाओं पर नजर आयेगा, साथ ही वो अपराध भी रुकेंगे, जिन पर पंचायतें हास्यास्पद फैसले सुना दिया करती हैं। ताजा खबर है कि 5 साल की बच्ची का रेप करने वाले युवक को ऐसी ही पंचायत ने बस 5 चप्पलें मार कर छोड़ दिया। बच्ची की तो जान भी चली गई पर उसके मां-बाप को पुलिस में शिकायत नहीं दर्ज कराने दी गयी। दो दिन पहले राजधानी से सटे भिवानी में एक बलात्कारी ने अपने परिवार की दो विधवाओं को चरित्रहीन बता कर सरेआम मार डाला। कानून को अपने हाथ में लेने की उतावली और इज्जत की आड़ में कमजोर वर्ग/जाति का शोषण किसी से छिपा नहीं है। यह सच है कि व्यवस्थागत ढिलाई के कारण कानून-व्यवस्था उन दूर-दराज के इलाकों तक नहीं पहुंचती, जहां आज भी सामंती सोच हावी है। आम आदमी बहुत निर्धन है, वह अंगूठाटेक है, उसको खाने के लाले हैं और गांव-घर से जबरन निकाले जाने का भय उसको इन पंचायतों के आगे घुटने टेकने को मजबूर करता रहा है। ऑनर किलिंग की आड़ में इन पंचायतों के सामंती फरमान वैसे ही रुकेंगे, जैसे सती प्रथा को रोका जा सका है। एक तरफ हम बार-बार आजादी और निजता के कसीदे काढ़ते हैं, दूसरी तरफ प्रेम करने वाले नवयुवाओं को सरेआम फांसी पर लटकाये जाने के वीभत्स पंचायती फैसले दिल दहला जाते हैं। ग्रामीण परिवेश में पंचायतों की भूमिका कभी सकारात्मक भी रही है, जिन्हें प्रेमचंद के शब्दों में पंच परमेश्वर माना जाता था, जिनका आस-पास के गांवों में सम्मान हुआ करता था। लेकिन उनके अमानवीय फरमानों ने दिल-दहलाऊ हरकतों द्वारा उन लोगों का जीना मुश्किल कर दिया, जिनके लिए 'अभी दिल्ली दूर है।' अदालत के इस फैसले से सिर्फ प्रेमीजन ही चैन की सास नहीं ले रहे होंगे बल्कि प्रशासन और पुलिस को भी अपनी मुस्तैदी चुस्त करने की कवायद शुरू कर देनी पड़ी होगी। जिसको गुनाह के बाद झकझोर कर उठाया जाता रहा है, वे अपने सूचना तंत्र को कैसे पुख्ता करते हैं, यह तो उनको स्वंय ही सोचना होगा।

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