आम आदमी भी अब मी लॉर्ड के आचरण पर अंगुली उठा सकेगा। आजादी के 63 साल बाद जगी यह एक बड़ी उम्मीद है। अब न्यायमूर्ति के खिलाफ शिकायत न केवल सुनी जाएगी बल्कि सही पाए जाने पर कार्रवाई भी होगी। न्यायिक सुधारों की एक बड़ी अपेक्षा को साकार करने वाला ज्युडिशल स्टैंडर्ड एंड एकाउंटबेलिटी बिल इस साल संसद की मंजूरी पा जाएगा। बस इस विधेयक के कानून बनने की देर है कि अब तक केवल नैतिक मूल्यों में बंधा न्यायाधीशों का आचरण कानून की परिधि में आ जाएगा और उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान होगा। न्यायिक सक्रियता और गतिरोध के बीच पिछले साल इस अत्यंत महत्वपूर्ण विधेयक ने संसद का मुंह देख ही लिया है। इस साल संसद इस पर चर्चा करेगी। न्यायाधीश के आचरण में खामी पाए जाने पर शिकायत करने का हक देने वाला कोई तंत्र फिलहाल भारत में मौजूद नहीं है। इस कानून का पहला उद्देश्य न्यायापालिका में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आम जनता की शिकायतें सुने जाने का तंत्र विकसित करना है। इस विधेयक की सबसे बड़ी खासियत है कि अगर आरोपी न्यायाधीश को प्रथम दृष्टया दोषी पाया जाता है, तो जांच के दौरान उससे न्यायिक कामकाज वापस लिया जा सकता है। जांच के बाद न्यायाधीश को यदि कदाचार का दोषी पाया जाता है, मगर उसका अपराध पद से हटाने की कार्रवाई के लायक नहीं है, तो चेतावनी या अच्छे आचरण के सुझाव जारी किए जा सकते हैं। अभी ऐसा कोई कानून नहीं है जिसमें न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव संसद में लंबित रहने के दौरान उससे न्यायिक कामकाज वापस लिया जा सकता हो। इसी का लाभ उठाते हुए पद से हटने की कार्रवाई का सामना कर रहे सिक्किम हाई कोर्ट केमुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनकरन ने लंबी छुट्टी पर जाने की सलाह नहीं मानी और आरोपी होने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश का कामकाज देख रहे हैं। लंबित विधेयक के कानून की शक्ल लेने के बाद न्यायाधीशों को अपनी और आश्रितों की संपत्ति घोषित करना अनिवार्य होगा। न्यायाधीश अभी स्वेच्छा से संपत्ति घोषित करते हैं। सुप्रीम कोर्ट और देश के कई हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति घोषित कर ब्योरा न्यायालय की वेबसाइट पर डाला हुआ है। कानून बनने के बाद यह अनिवार्यता की श्रेणी में आ जाएगा।
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