Sunday, January 9, 2011

आत्मचिंतन का अवसर

लेखक न्यायाधीशों की निगरानी के लिए न्यायपालिका के भीतर तंत्र विकसित करने की सलाह दे रहे हैं
यह एक विचित्र संयोग है कि भारत के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगी हुई है। इनके खिलाफ रोज कुछ न कुछ आरोप लग रहे हैं। जस्टिस वाईके सब्बरवाल के खिलाफ तो भ्रष्टाचार के आरोपों की फाइल कानून मंत्रालय तक पहुंच गई थी, किंतु उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। आजकल केजी बालाकृष्णन के खिलाफ नई-नई बातें आ रही हैं। तमिलनाडु हाईकोर्ट के एक जज ने तो उनके खिलाफ न केवल पत्र लिखा, बल्कि बयान भी दिया। अब नया विवाद उनके दामाद द्वारा केरल में अर्जित संपत्ति को लेकर है। मैं नहीं जानता कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, लेकिन मेरा मानना है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश पर कभी कोई आरोप लगने ही नहीं चाहिए। फांसी के मामले को छोड़कर भारत के मुख्य न्यायाधीश के किसी फैसले को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री तक नहीं पलट सकते। ऐसे में यदि किसी के साथ अन्याय हो जाता है तो भगवान के अलावा उसे कोई राहत नहीं दे सकता। इतने शक्तिशाली व्यक्ति को तो हर हाल में आरोपों से परे होना चाहिए। वह किसी चीज से भी प्रभावित न हो और न ही कोई उसे प्रभावित कर सके। वह गीता के उस सिद्धांत की तरह होना चाहिए, जिसमें भगवान कृष्ण कहते हैं कि सतोगुणी व्यक्ति वह है जो कर्म में लिप्त होते हुए भी अलिप्त रहता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी दुनियादारी में लिप्त रहते हुए भी अंदर से सचमुच अलिप्त रहना चाहिए, तभी वह सच्चा न्याय प्रदान कर सकता है। आजकल अनेक उच्च न्यायालय भी आरोपों के घेरे में हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के खिलाफ जस्टिस काटजू और जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने आरोप लगाया कि इसमें कुछ न कुछ सड़ रहा है। कहने का मतलब है कि यहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है। यदि इन दो जजों ने कोई बात कही है तो इसका कोई आधार जरूर होगा। इनके पास ऐसी सूचनाएं होंगी जिसके आधार पर उन्होंने इतनी कड़ी आलोचना की है। एक बार जस्टिस काटजू ने एक जज के बारे में मुझसे कहा कि वह स्लॉगओवर्स खेल रहा है। काटजू साहब का मानना था कि वह जज रिटायरमेंट के आखिरी साल में है, इसलिए तेजी से पैसे बना रहा है। जस्टिस काटजू जैसे ईमानदार जज मुश्किल से मिलते हैं। उनकी बातों को आसानी से भुला नहीं देना चाहिए। मेरा अभी भी मानना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभी भी अच्छे जजों की संख्या खराब जजों से ज्यादा है, लेकिन एक सड़ी हुई मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इलाहाबाद से ज्यादा बुरा हाल कोलकाता और गुवाहाटी हाईकोर्ट का है। कोलकाता हाईकोर्ट के एक जज सोमित्र सेन किसी भी समय राज्यसभा के सामने पेश किए जा सकते हैं। उनके खिलाफ महाभियोग को मंजूरी मिल गई है। ऐसा नहीं है कि इन हाईकोर्ट में सारे जज खराब हैं। मुश्किल से एक-चौथाई जज खराब होते हैं, जिनकी वजह से तीन-चौथाई जजों को बदनामी झेलनी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के सभी अच्छे जज दुखी महसूस कर रहे होंगे। आखिर इलाहाबाद हाईकोर्ट से ही हाल में कई अच्छे न्यायाधीश जैसे कि जस्टिस बीएस चौहान, जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद, जस्टिस गोखले आदि सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। अभी गुजरात हाईकोर्ट गए जस्टिस सहाय भी श्रेष्ठ जजों में से हैं। यही हाल अन्य उच्च न्यायालयों का भी है, जिनमें अच्छे जजों की भरमार है, लेकिन पच्चीस प्रतिशत खराब जज सबकी बदनामी कर रहे हैं। दरअसल, हर हाईकोर्ट में जजों को अपना एक आत्मावलोकन फोरम बनाना चाहिए और वे स्वयं ऐसे जजों को समय-समय पर चेतावनी दें या ब्लैक लिस्ट करें जिनके बारे में उन्हें तथ्यों पर आधारित शिकायतें सुनने को मिलती है। उत्तर प्रदेश में आईएएस एसोसिएसन यह काम करती है जो भ्रष्ट आईएएस अफसरों को पहचान कर प्रताडि़त करती है। भ्रष्ट जजों का कुछ वकीलों से संपर्क रहता है और उनके आधार पर लेन-देन होता रहता है। तीन किस्म के वकील आजकल पाए जाते हैं। अभी भी ज्यादातर संख्या ऐसे वकीलों की है जो मेहनत से अपना काम कर रहे हैं, लेकिन हर जगह कुछ ऐसे वकील हैं जो कुछ जजों से मिलीभगत करके पैसा कमाते हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई काबिल वकील हैं और उनका नाम भी है इसलिए उनके पास वैसे ही केसों की भरमार रहती है और करोड़ों की आमदनी होती है। हाल ही में दिल्ली में एक वकील ने अपने पुत्र की शादी में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिए, लेकिन सच्चाई यह है कि जिला अदालतों और काफी हद तक कुछ उच्च न्यायालयों में वकील बेहद गरीबी की हालत में काम कर रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हर जगह वकीलों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। कानून की डिग्री लेना एकदम आसान हो गया है। लोग यह डिग्री लेकर कचहरी में बैठ जाते हैं जबकि उनमें से बहुतों को कानून का कुछ ज्ञान नहीं होता। वे जजों और मजिस्ट्रेट तक को धमकाते हैं। ऐसे वकीलों की संख्या ज्यादा नहीं होती है, लेकिन उनकी वजह से अच्छे वकील भी न केवल परेशान रहते हैं, बल्कि बदनामी झेलते रहते हैं। इसलिए अब यह बहुत जरूरी है कि लॉ की डिग्री लेने के बाद भी प्रेक्टिस शुरू करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को कड़ा इम्तिहान लेना चाहिए और समय-समय पर खराब वकीलों का लाइसेंस रद भी करना चाहिए। केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने संसद में घोषणा की है कि वह जल्दी ही न्यायाधीश मानक एवं जवाबदेही विधेयक लाने वाले हैं। उनके मुताबिक इस विधेयक के अंदर ऐसे प्रावधान किए जाएंगे, जिससे गलत व्यक्ति जज नहीं बन पाएगा। यदि कोई व्यक्ति जज बनने के बाद गलत काम करने लगता है तो उसकी जवाबदेही भी सुनिश्चित की जाएगी। ऐसे व्यक्ति को कड़ी सजा या हटाने के बंदोबस्त होंगे। नेता विपक्ष अरुण जेटली का यह कहना था कि यह अजब मजाक है कि जज ही जज की नियुक्ति कर रहा है, जबकि अन्य किसी क्षेत्र में ऐसा नहीं होता है। उनका मानना है कि जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका अर्थात सरकार का पूरा दखल होना चाहिए। सरकारी छानबीन से जो जज बनते हैं वे ज्यादा बेहतर होते हैं और पिछले साठ सालों में यह साबित भी हो चुका है। इनमें भाई-भतीजावाद और सिफारिश नहीं चल पाती है। इस विधेयक को बजट सत्र में लाया जा सकता है। यह न्यायपालिका के हित में है कि जल्द से जल्द जजों की जवाबदेही का विधेयक पारित हो। इससे अच्छे जजों का सम्मान होगा और खराब जजों का खुलासा। (लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं)

No comments:

Post a Comment