Saturday, January 15, 2011

बालकृष्णन से विनम्र आग्रह

न्यायमूर्ति श्री बालकृष्णन जी,
यह बहुत दुखद और कष्टप्रद, बल्कि कहें कि सदमा पहुंचाने वाला है, जब मैंने एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में यह पढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुए चार वर्षो के छोटे से कार्यकाल में आपके दामाद की संपत्ति में 120 गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। अपने सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की प्रतिमूर्ति और लोगों के लिए रोल मॉडल रहे जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने राष्ट्रपति से विनम्रतापूर्वक आग्रह किया है कि वह आपको राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पद से इस्तीफा देने का सलाह दें और प्रतिष्ठित जजों की तीन सदस्यीय पैनल से पूरे मामले की जांच के लिए आपको तैयार होने का सुझाव भी उन्होंने दिया है। यही एक तरीका है, जिसके द्वारा आप अपनी प्रतिष्ठा बनाए रख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के गलियारों और जहां-तहां फै ल रही अफवाहें वास्तव में परेशान करने वाली हैं। इस समय देश में जिस तरह का माहौल चल रहा है, उसमें जनता में इस तरह की अफवाहों पर पूर्ण विश्वास करने की एक प्रवृत्ति विकसित हो गई है। भ्रष्टाचार के बारे में मेरा अंतर्मन यही कहता है कि यह मानवाधिकारों का एक गंभीर मामला है। इस बारे में मेरा निश्चित मत है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं किसी भी तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघनकर्ता की भूमिका में नहीं आना चाहेगा। इन बातों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि इन विवादों पर से पर्दा उठे, बल्कि आप खुद को देश की जनता के समक्ष निष्पक्ष भी साबित करें। मैं सुप्रीमकोर्ट के तीन मुख्य न्यायाधीशों के साथ काम कर चुका हूं। इन सभी न्यायाधीशों ने अपने कार्यो से देश की इस सर्वोच्च न्यायिक निकाय की प्रतिष्ठा, सम्मान और गरिमा में बढ़ोतरी करने का ही काम किया। इन प्रतिष्ठित न्यायाधीशों में मुझे याद आते हैं स्वर्गीय एम. हिदायतुल्ला, जो उस समय भारत के उपराष्ट्रपति के तौर पर काम कर रहे थे, तब मैं राज्यसभा के महासचिव के तौर पर कार्यरत था। इसके अलावा दूसरे दो प्रतिष्ठित न्यायाधीशों में एक थे न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचेलैया और न्यायमूर्ति जेएस वर्मा। ये दोनों ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष रहे थे, जब मैं इस आयोग में एक सदस्य के तौर पर कार्यरत था। ये तीनों ही न्यायाधीश अद्भुत ज्ञानप्रतिभा से युक्त न केवल एक महान व्यक्ति के रूप में ख्यात रहे, बल्कि अपने सार्वजनिक जीवन में दूसरों के लिए ईमानदारी का एक रोल मॉडल भी बने। यदि देश की आम जनता का भरोसा और विश्वास न्यायपालिका से उठ जाता है तो वह देश के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन होगा और साथ ही हमारी लोकतांत्रिक राजनीति के लिए भी एक बड़ा झंझावात। मैं खुद भी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का प्रबल पक्षधर हूं। जब आप भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे तो मैंने आपको एक पत्र लिखा था, जिसमें मैंने विस्तार से सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व न्यायाधीशों द्वारा विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष और विदेश की अदालतों में व्यक्तिगत अभियोजक के तौर पर रहते हुए भी मुकदमों के फैसले करने की जानकारी दी थी। उस संदर्भ में मुझे आपसे काफी अपेक्षा थी कि कोई सकारात्मक जवाब मिलेगा, लेकिन आपकी तरफ से इस तरह का कोई भी जवाब मुझे नहीं मिल सका। हालांकि इस बारे में आपके दो पूर्ववर्तियों को भी मैंने पत्र लिखा था और उन्होंने मुझे पत्र द्वारा जवाब देकर मुझसे सहमति जताई थी, लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही रहा कि सहमति जताने के बावजूद भी किसी ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया अथवा कदम उठाना जरूरी नहीं समझा कि किस तरह इस बुराई को न्यायपालिका से खत्म किया जाए और एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की जाए। हालांकि आज के माहौल में यह एक बहुत जरूरी कदम है, क्योंकि न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास अब डगमगाने लगा है और लोगों के बीच तरह-तरह के अफवाह और भ्रांतियां घर करती जा रही हैं। इस संदर्भ में मैं आपसे एक बार फिर पूरी गंभीरता से कहना चाहता हूं कि आप अपने वर्तमान पद से इस्तीफा देने के बारे में अपने से विचार करें। इसके अलावा खुद को बेदाग साबित करने के लिए किसी भी तरह की जांच के लिए अपनी हामी भरें ताकि लोगों में व्याप्त तमाम शंकाओं-आशंकाओं के गर्द-गुबार को साफ किया जा सके। इससे आपकी विश्वसनीयता पुन: प्रतिष्ठित होगी और न्यायपालिका की इस संस्था और लोकतंत्र पर लोगों का विश्वास बहाल और मजबूत होगा। (लेखक उत्तराखंड व सिक्किम के पूर्व राज्यपाल हैं)

No comments:

Post a Comment