महिलाओं के भरण-पोषण भत्ते को सीमित करने का राज्य सरकारों को कोई हक नहीं है जबकि केंद्र की ओर से कानून में इसकी कोई सीमा तय न की गई हो। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-125 में राज्य सरकारों की ओर से किए गए संशोधन को अवैध करार दिया। उसने साथ ही केंद्र सरकार की ओर से इस धारा में सन् 2001 को किए गए संशोधन को बरकरार रखा।
केंद्र ने एक दशक पहले संशोधन कर महिलाओं के भरण-पोषण भत्ते को असीमित कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-125 में राज्यों की ओर से संशोधन कर भरण-पोषण की राशि तय करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। केंद्र जब इस धारा में संशोधन कर ‘पांच हजार रुपये से ज्यादा नहीं’ के वाक्य को हटा चुका है तो राज्यों की ओर से यह संशोधन वैध नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सभी राज्यों और केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
अधिकतर राज्यों ने सीआरपीसी की धारा-125 में संशोधन कर भरण पोषण भत्ते की सीमा तय कर दी थी जिसमें कोई समानता नहीं थी।
वहीं केंद्र सरकार के कानून के अनुसार इसकी कोई सीमा तय की थी। महिला की भरण-पोषण भत्ता की मांग पर अदालतों को तथ्यों और स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राशि तय करने की छूट दी गई थी।
इसके साथ ही जस्टिस मार्कंडेय काटजू व जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा की बेंच ने मनोज यादव की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने जनवरी, 09 में मनोज को उसकी पत्नी पुष्पा की ओर से दायर याचिका पर चार हजार रुपये मासिक भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश जारी किया था जबकि राज्य ने धारा-125 में संशोधन कर भरण पोषण राशि की सीमा तीन हजार रुपये तय की थी। राज्य सरकारों की ओर से किए गए संशोधन पर हैरत जताते हुए बेंच ने आदेश में कहा कि केंद्र ने भरण-पोषण की राशि की कोई सीमा तय नहीं की है। यह अदालत के विवेक पर निर्भर है कि आवेदन पर कितना भरण-पोषण तय किया जाए। राज्य सरकारों की ओर से किया गया संशोधन अनुचित और अवैध है।
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