लोकपाल बिल भी : उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोकपाल बिल भी लाया जा रहा है। कानून मंत्रालय ने इस विषय पर सभी मंत्रालयों से राय मांगी है। लोकपाल बिल को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं है। इस बिल के तहत प्रधानमंत्री को भी लिया जा सकता है। लोकपाल बिल का प्रारूप सभी मंत्रालयों को भेज दिया गया है। बिल पर मंत्रियों का समूह भी विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि उच्च स्तर पर पनपे भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है। कानून के अलावा प्रशासनिक स्तर पर भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। मोइली ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में सरकार के साथ न्यायपालिका ने भी कारगर कदम उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया ने सभी हाईकाटरे के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार के मुकदमों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजने का आग्रह किया है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा राज्यों के अपने एंटी करप्शन कानूनों के तहत पेंडिंग मुकदमों को जल्द से जल्द निपटाया जाएगा। कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी: मोइली ने कहा है कि अदालती समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी। प्राथमिक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही केस जज के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। इससे पेंडिंग मुकदमों का अंबार कम होगा। इस समय 60 से 65 प्रतिशत अदालती समय(जुडीशियल टाइम)औपचारिकता पूरी करने में चला जाता है। विभिन्न कारणों से सूचीबद्ध मुकदमों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ती है। अदालतों का आधे से अधिक समय मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने और अगली तारीख तय करने में चला जाता है। हलफनामा आदि दायर न होने पर जजों को सुनवाई टालनी पड़ती है। जजों के सामने मुकदमा सूचीबद्ध होने से पहले सभी औपचारिकताएं पूरी करने का जिम्मा कोर्ट मैनेजर्स का होगा। अदालत द्वारा जारी नोटिस तामील हुए हैं या नहीं, याचिका में बताई गई कमी को सुधारा गया है या नहीं, इस पर पहले से ही गौर किया जाएगा ताकि अदालत में केस सूचीबद्ध होने पर जज सुनवाई कर सके। इस समय सुनवाई के लिए लगे सभी केस कॉल किए जाते हैं और सभी कागजात दुरुस्त न होने पर उनमें अगली तारीख ही लगानी पड़ती है। मोइली ने कहा कि अंतिम सुनवाई के लिए केस सूचीबद्ध करने के तरीके में भी बदलाव लाया जाएगा। मौजूदा सिस्टम में केस दायर होने के वर्ष के हिसाब से मुकदमा सुनवाई के लिए अदालत में आता है। यानी दायर करने की तारीख के हिसाब से सुनवाई की प्राथमिकता तय होती है। साधारण और जटिल मुकदमों में कोई फर्क नहीं किया जाता। इस चक्कर में साधारण और बहुत ही कम समय में निपटने वाले मुकदमे भी कई साल तक पेंडिंग पड़े रहते हैं। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा पर विचार: आईएएस की तर्ज पर न्यायिक सेवा का भी सृजन किया जाएगा। निचले स्तर पर जजों के रिक्त पदों में से एक चौथाई इस परीक्षा के जरिए भरे जाएंगे। सरकार का मकसद है कि जुडीशियरी में प्रतिभाशाली नौजवान आ सके। इस मुद्दे पर राज्यों के मुख्यमंत्री और हाईकोटरे के मुख्य न्यायाधीशों से कई बार बातचीत हुई है। भाषा और कैडर आवंटन को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों पर सहमति बन गई है। न्यायिक सेवा की परीक्षा के जरिए न्यायिक अधिकारी पदोन्नति पाकर उच्चतर न्यायपालिका का हिस्सा बन सकेंगे। न्यायिक स्टैंर्डड और जवाबदेही बिल: न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने और जजों की जवाबदेही तय करने के लिए एक बिल लोकसभा की स्थायी समिति को भेज दिया गया है। जजों को अपनी संपत्ति भी सार्वजनिक करनी होगी। हायर जुडीशियरी के जजों के खिलाफ शिकायत मिलने पर उसकी जांच का प्रावधान होगा। शिकायत फर्जी पाए जाने पर पांच साल की सजा और पांच लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान प्रस्तावित है।
Saturday, January 15, 2011
मौलिक अधिकार बनेगा न्याय: मोइली
केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि जनसाधारण को जल्द और सस्ता न्याय दिलाने के लिए न्याय का अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया जाएगा। शिक्षा के अधिकार की तर्ज पर इसके लिए बिल जल्दी ही कैबिनेट के समक्ष लाया जाएगा। इस कानून के तहत मुकदमों को निपटाने के लिए समयसीमा तय की जाएगी। संवाददाताओं से बातचीत में मोइली ने कहा कि न्याय का अधिकार बिल का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। अपने अधिकारों के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के इच्छुक लोगों को धन के अभाव में अपने हक से वंचित नहीं होना पड़ेगा। उन्हें सरकार की ओर से वकील उपलब्ध कराया जाएगा। यह वकील पेशेवर हो और अपने मुवक्किल को सही कानूनी सलाह दे सके, इसका ख्याल रखा जाएगा।
लोकपाल बिल भी : उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोकपाल बिल भी लाया जा रहा है। कानून मंत्रालय ने इस विषय पर सभी मंत्रालयों से राय मांगी है। लोकपाल बिल को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं है। इस बिल के तहत प्रधानमंत्री को भी लिया जा सकता है। लोकपाल बिल का प्रारूप सभी मंत्रालयों को भेज दिया गया है। बिल पर मंत्रियों का समूह भी विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि उच्च स्तर पर पनपे भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है। कानून के अलावा प्रशासनिक स्तर पर भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। मोइली ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में सरकार के साथ न्यायपालिका ने भी कारगर कदम उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया ने सभी हाईकाटरे के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार के मुकदमों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजने का आग्रह किया है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा राज्यों के अपने एंटी करप्शन कानूनों के तहत पेंडिंग मुकदमों को जल्द से जल्द निपटाया जाएगा। कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी: मोइली ने कहा है कि अदालती समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी। प्राथमिक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही केस जज के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। इससे पेंडिंग मुकदमों का अंबार कम होगा। इस समय 60 से 65 प्रतिशत अदालती समय(जुडीशियल टाइम)औपचारिकता पूरी करने में चला जाता है। विभिन्न कारणों से सूचीबद्ध मुकदमों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ती है। अदालतों का आधे से अधिक समय मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने और अगली तारीख तय करने में चला जाता है। हलफनामा आदि दायर न होने पर जजों को सुनवाई टालनी पड़ती है। जजों के सामने मुकदमा सूचीबद्ध होने से पहले सभी औपचारिकताएं पूरी करने का जिम्मा कोर्ट मैनेजर्स का होगा। अदालत द्वारा जारी नोटिस तामील हुए हैं या नहीं, याचिका में बताई गई कमी को सुधारा गया है या नहीं, इस पर पहले से ही गौर किया जाएगा ताकि अदालत में केस सूचीबद्ध होने पर जज सुनवाई कर सके। इस समय सुनवाई के लिए लगे सभी केस कॉल किए जाते हैं और सभी कागजात दुरुस्त न होने पर उनमें अगली तारीख ही लगानी पड़ती है। मोइली ने कहा कि अंतिम सुनवाई के लिए केस सूचीबद्ध करने के तरीके में भी बदलाव लाया जाएगा। मौजूदा सिस्टम में केस दायर होने के वर्ष के हिसाब से मुकदमा सुनवाई के लिए अदालत में आता है। यानी दायर करने की तारीख के हिसाब से सुनवाई की प्राथमिकता तय होती है। साधारण और जटिल मुकदमों में कोई फर्क नहीं किया जाता। इस चक्कर में साधारण और बहुत ही कम समय में निपटने वाले मुकदमे भी कई साल तक पेंडिंग पड़े रहते हैं। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा पर विचार: आईएएस की तर्ज पर न्यायिक सेवा का भी सृजन किया जाएगा। निचले स्तर पर जजों के रिक्त पदों में से एक चौथाई इस परीक्षा के जरिए भरे जाएंगे। सरकार का मकसद है कि जुडीशियरी में प्रतिभाशाली नौजवान आ सके। इस मुद्दे पर राज्यों के मुख्यमंत्री और हाईकोटरे के मुख्य न्यायाधीशों से कई बार बातचीत हुई है। भाषा और कैडर आवंटन को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों पर सहमति बन गई है। न्यायिक सेवा की परीक्षा के जरिए न्यायिक अधिकारी पदोन्नति पाकर उच्चतर न्यायपालिका का हिस्सा बन सकेंगे। न्यायिक स्टैंर्डड और जवाबदेही बिल: न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने और जजों की जवाबदेही तय करने के लिए एक बिल लोकसभा की स्थायी समिति को भेज दिया गया है। जजों को अपनी संपत्ति भी सार्वजनिक करनी होगी। हायर जुडीशियरी के जजों के खिलाफ शिकायत मिलने पर उसकी जांच का प्रावधान होगा। शिकायत फर्जी पाए जाने पर पांच साल की सजा और पांच लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान प्रस्तावित है।
लोकपाल बिल भी : उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोकपाल बिल भी लाया जा रहा है। कानून मंत्रालय ने इस विषय पर सभी मंत्रालयों से राय मांगी है। लोकपाल बिल को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं है। इस बिल के तहत प्रधानमंत्री को भी लिया जा सकता है। लोकपाल बिल का प्रारूप सभी मंत्रालयों को भेज दिया गया है। बिल पर मंत्रियों का समूह भी विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि उच्च स्तर पर पनपे भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है। कानून के अलावा प्रशासनिक स्तर पर भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। मोइली ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में सरकार के साथ न्यायपालिका ने भी कारगर कदम उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया ने सभी हाईकाटरे के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार के मुकदमों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजने का आग्रह किया है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा राज्यों के अपने एंटी करप्शन कानूनों के तहत पेंडिंग मुकदमों को जल्द से जल्द निपटाया जाएगा। कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी: मोइली ने कहा है कि अदालती समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए कोर्ट मैनेजर्स की नियुक्ति की जाएगी। प्राथमिक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही केस जज के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। इससे पेंडिंग मुकदमों का अंबार कम होगा। इस समय 60 से 65 प्रतिशत अदालती समय(जुडीशियल टाइम)औपचारिकता पूरी करने में चला जाता है। विभिन्न कारणों से सूचीबद्ध मुकदमों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ती है। अदालतों का आधे से अधिक समय मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने और अगली तारीख तय करने में चला जाता है। हलफनामा आदि दायर न होने पर जजों को सुनवाई टालनी पड़ती है। जजों के सामने मुकदमा सूचीबद्ध होने से पहले सभी औपचारिकताएं पूरी करने का जिम्मा कोर्ट मैनेजर्स का होगा। अदालत द्वारा जारी नोटिस तामील हुए हैं या नहीं, याचिका में बताई गई कमी को सुधारा गया है या नहीं, इस पर पहले से ही गौर किया जाएगा ताकि अदालत में केस सूचीबद्ध होने पर जज सुनवाई कर सके। इस समय सुनवाई के लिए लगे सभी केस कॉल किए जाते हैं और सभी कागजात दुरुस्त न होने पर उनमें अगली तारीख ही लगानी पड़ती है। मोइली ने कहा कि अंतिम सुनवाई के लिए केस सूचीबद्ध करने के तरीके में भी बदलाव लाया जाएगा। मौजूदा सिस्टम में केस दायर होने के वर्ष के हिसाब से मुकदमा सुनवाई के लिए अदालत में आता है। यानी दायर करने की तारीख के हिसाब से सुनवाई की प्राथमिकता तय होती है। साधारण और जटिल मुकदमों में कोई फर्क नहीं किया जाता। इस चक्कर में साधारण और बहुत ही कम समय में निपटने वाले मुकदमे भी कई साल तक पेंडिंग पड़े रहते हैं। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा पर विचार: आईएएस की तर्ज पर न्यायिक सेवा का भी सृजन किया जाएगा। निचले स्तर पर जजों के रिक्त पदों में से एक चौथाई इस परीक्षा के जरिए भरे जाएंगे। सरकार का मकसद है कि जुडीशियरी में प्रतिभाशाली नौजवान आ सके। इस मुद्दे पर राज्यों के मुख्यमंत्री और हाईकोटरे के मुख्य न्यायाधीशों से कई बार बातचीत हुई है। भाषा और कैडर आवंटन को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों पर सहमति बन गई है। न्यायिक सेवा की परीक्षा के जरिए न्यायिक अधिकारी पदोन्नति पाकर उच्चतर न्यायपालिका का हिस्सा बन सकेंगे। न्यायिक स्टैंर्डड और जवाबदेही बिल: न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने और जजों की जवाबदेही तय करने के लिए एक बिल लोकसभा की स्थायी समिति को भेज दिया गया है। जजों को अपनी संपत्ति भी सार्वजनिक करनी होगी। हायर जुडीशियरी के जजों के खिलाफ शिकायत मिलने पर उसकी जांच का प्रावधान होगा। शिकायत फर्जी पाए जाने पर पांच साल की सजा और पांच लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान प्रस्तावित है।
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