Tuesday, March 1, 2011

न्याय की कसौटी पर गोंधरा कांड


 कौन बेपर्दा होने से बचा? कांग्रेस बेपर्दा हुई। लालू बेपर्दा हुए। जस्टिस यूसी बनर्जी जैसा न्यायविद् बेपर्दा हुआ, जिसने दलगत राजनीति की फांस में पड़कर गलत और प्रत्यारोपित तथ्य गढ़कर न्याय की हत्या की थी। गोधरा कांड पर तुष्टीकरण की राजनीति की भी पोल खुल चुकी है और कथित पंथनिरपेक्ष दलों द्वारा अभियुक्तों को संरक्षण देने का खतरनाक खेल खेला गया। यहां तक कि तथ्य को हाशिये पर डालने की राजनीति चली गई। इस राजनीतिक खेल में कांग्रेस तो थी ही, इसके राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी शामिल थे। तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बनर्जी आयोग का गठन किया था। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बनर्जी ने लालू और कांग्रेस के वोट के राजनीतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए अपने हाथ काले किए। उन्होंने ऐसे तथ्य गढ़े और स्पष्ट करने की कोशिश की कि गोधरा कांड एक हादसा था और बोगियों में आग बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से ही लगी थी। बनर्जी आयोग की रिपोर्ट पर काफी बवाल मचा था। कांग्रेस और राजद सहित कथित पंथनिरपेक्ष पार्टियों ने बनर्जी आयोग की रिपोर्ट के बूते चुनावी रोटियां सेंकी और जितना हो सकता था, तुष्टीकरण की बिसात पर मुसलमानों केा बरगलाया गया। अब कांग्रेस, लालू प्रसाद यादव और खुद को पंथनिरपेक्ष बताने वाली पार्टियां कौन-सा तर्क रखेंगी? जस्टिस यूसी बनर्जी अब अपनी रिपोर्ट का बचाव कैसे करेंगे? गोधरा कांड एक बड़ी साजिश थी और षड्यंत्र के तहत कारसेवकों की बोगियों को आग के हवाले किया गया था। कारसेवक अयोध्या में कारसेवा कर साबरमती एक्सप्रेस से गुजरात लौट रहे थे। गोधरा में मुस्लिम वर्ग के शरियत मानसिकता से ग्रसित लोगों ने हमला कर कारसेवकों को जिंदा जलाने जैसे अपराध किए थे, जिसकी परिणति में गुजरात ने वीभत्स प्रतिक्रिया देखी और सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए। आतंकवाद और शरियत मानसिकता से ग्रसित संगठनों ने देश में दो मुख्य संप्रदायों को लड़ाने और कत्लेआम कराने की नीति चली थी। हालांकि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोधरा कांड और गुजरात दंगों के बाद विकास और उन्नति की रचनात्मक नीति चुनी है। परिणाम यह रहा कि गुजरात देश के सबसे उन्नत प्रदेश में शामिल है। विकास-उन्नति ऐसी उपलब्धि है, जिस पर मोदी की तारीफ करने में मुस्लिम वर्ग भी पीछे नहीं है। बेनकाब हुई साजिश न्याय को प्रभावित करने और माखौल उड़ाने की कोई भी तह खाली छोड़ी नहीं गई। गोधरा कांड को लेकर एक पर एक प्रत्यारोपित तथ्य गढ़े गए। अभियोजन पक्ष के सामने कई चुनौतियां खड़ी की गई। आरोप यह लगाया गया कि अभियोजन पक्ष हिंदूवादी विचारधारा से ग्रसित है और जान-बूझकर मुस्लिम समुदाय का धार्मिक उत्पीड़न कर रहा है। जबकि सच्चाई थी कि एक बड़ी साजिश के तहत कारसेवकों को जलाया गया था और उसके परिस्थिति जन्य तथ्य भी थे और तस्वीर भी थी। यह बात खुद गोधरा कांड के आरोपियों को दोषी करार देते हुए अदालत ने कही और तथ्य व सबूतों के आधार पर ही दोषियों के लिए सजा मुकर्रर की। तस्वीर में साफतौर पर स्पष्ट था कि आग लगाने वाली भीड़ संगठित थी। भीड़ उग्र मानसिकता से ग्रसित थी। गोधरा कांड के अभियुक्तों की पहचान करना और सजा के लिए तथ्य जुटाना आसान काम नहीं था। रेल मंत्रालय पूरी तरह से असहयोगात्मक रवैया अपनाया हुआ था। चूंकि यह भयंकर कांड साबरमती एक्सप्रेस में हुआ था, इसलिए रेल मंत्रालय की भूमिका महत्वपूर्ण थी। अभियोजन पक्ष ने रेल मंत्रालय की उदासीनता की भूमिका से भी हौसले नहीं खोए और अभियुक्तों की पहचान कर न्यायालय में संज्ञान के लायक तथ्य जुटाए। कुल 97 लोगों को गिरफ्तार किया था। 94 लोगों के खिलाफ आरोप तय हुए। अदालती मुहर अदालत ने साफतौर पर माना कि गोधरा कांड न तो दुर्घटना का नतीजा था और न ही आग अंदर से लगाई गई थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि यह अग्निकंाड एक दुर्लभ अपराध था और संगठित भी था। हालांकि अदालत ने अभियोजन पक्ष के सभी तथ्यों पर भरोसा भी नहीं किया। इसका परिणाम यह निकला कि अभियोजन पक्ष को सभी अभियुक्तों को सजा दिलाने में सफलता नहीं मिली। अदालत ने 94 अभियुक्तों में से 63 को बरी कर दिया और 31 अभियुक्तों हो दोषी मानते हुए इनमें से 11 लोगों को फांसी की सजा सुनाई। बाकी को उम्रकैद। हालांकि बरी हुए अभियुक्तों में अभियोजन पक्ष की ओर से मुख्य आरोपी मौलाना हुसैन उमर भी है। ठीक है कि गोधरा की निचली अदालत ने 63 आरोपियों को पर्याप्त सबूतों के अभाव में बरी कर दिया, लेकिन अभियोजन पक्ष को इससे निराश होने की कोई जरूरत नहीं। गुजरात सरकार और अभियोजन पक्ष के पास निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देने के लिए विकल्प खुला है ही। हां, अभियोजन पक्ष को और इससे जुड़े और साक्ष्य जुटाने होंगे ताकि हर गुनाहगार को सजा दिलाई जा सके। गुजरात सरकार और अभियोजन पक्ष का मानना था कि मौलाना हुसैन उमर ही गोधरा कांड का मास्टर माइंड है। मौलाना हुसैन उमर की गतिविधियां भी संदिग्ध थीं। उमर के बरी होने से अभियोजन पक्ष को जरूर झटका लगा है, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अभियोजन पक्ष ने कठिन परिस्थितियों में अभियुक्तों के खिलाफ न्यायिक सक्रियता दिखाई है। मोदी की जीत गोधरा कांड में निचली अदालत के फैसले से निश्चित रूप से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राहत मिली होगी और उन लोगों का मुंह भी बंद हुआ होगा, जो इस भीषण अग्निकांड और इसके बाद हुए दंगे के लिए मोदी को जिम्मेवार ठहरा रहे थे। कांग्रेस के मंसूबों पर भी पानी फिर गया होगा। हाल के दिनों में मोदी को कुर्सी से हटाने के लिए कांग्रेस ने दो रास्ते चुने थे। पहला, मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार और दूसरा मोदी के खिलाफ अति न्यायिक सक्रियता दिखाना। कांग्रेस ने सोचा था कि दुष्प्रचार और न्यायिक सक्रियता के माध्यम से मोदी को हटाया जा सकता है। मोदी को जेल की हवा खिलाई जा सकती है। गुजरात सरकार के एक मंत्री अमित शाह को सीबीआइ के माध्यम से जेल भिजवाने में कांग्रेस कामयाब भी हो गई थी। इसी तरह सोहराबुद्दीन और इशरत जहां मुठभेड़ कांड पर मोदी को उलझाने का ज्वार जोर पकड़ा। फिर भी वह आग में तपकर बाहर निकलते गए। गोधरा कांड पर 31 अभियुक्तों को दोषी ठहराने पर मोदी की जीत हुई है। मोदी अब दुगने उत्साह से अपने ऊपर लगाए गए आरोपों और सीबीआइ की घेरेबंदी का मुकबला कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी के आक्रामक तेवर कांग्रेस के लिए दुरूह होंगे और गुजरात में कांग्रेस हाशिये पर खड़ी होगी। उन्माद की राजनीति का दमन जरूरी देश में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति खतरनाक रूप धारण करती जा रही है। तुष्टीकरण की राजनीति से राष्ट्रीय हित हाशिये पर चला जाता है। तथाकथित पंथनिरपेक्षवादी नेताओं-बुद्धिजीवियों ने देश की छवि खराब करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। खासकर गुजरात के दंगे को लेकर विदेशों में भी छवि खराब की गई। देश के न्यायालय पर भी उंगली उठाई गई। तर्क दिया गया कि भारत के न्यायालय पर विश्वास नहीं है। इसलिए गुजरात दंगों की सुनवाई और इस पर फैसला संयुक्त राष्ट्र संघ में या इसकी देखरेख में होना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कोड़ा भी चला पर सुप्रीम कोर्ट की खिंचाई से कथित पंथनिरपेक्षता की राष्ट्रविरोधी नीतियों का प्रबंधन भी नहीं संभव हो सकता है। गोधरा कांड पर आए फैसले से सभी वर्गो को सबक लेना चाहिए। देश में उफान की राजनीति का दमन होना चाहिए। गुजरात आज विकास और उन्नति के रास्ते पर सर्वोत्तम स्थान हासिल कर चुका है। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सत्ता को जनहितैषी बनाया है। हिंदू-मुस्लिम भेद नहीं होने दिया गया। विकास और उन्नति के सफर में हिंदू-मुस्लिम दोनों सामान रूप से लाभान्वित हैं। फिर भी कांग्रेस ऊफान की राजनीति से मुंह मोड़ने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस ने गोधरा कांड पर आए फैसले को न्यायिक जीत स्वीकार करने की जगह नरेंद्र मोदी की आलोचना की ही नीति अपनाई। कांग्रेस अगर मुसलमानों का भला करना चाहती है तो उसे तुष्टीकरण की नीति छोड़ सामान्य विकास की अवधारणा विकसित करनी होगी। मुस्लिम वर्ग को भी कथित पंथनिरपेक्ष दलों की कारगुजारियों और वोट की राजनीति की असली कहानी देखनी चाहिए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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