Tuesday, March 15, 2011

दोस्ती को भारत के बंदी छोड़े पाक


एक असामान्य कदम के तहत उच्चतम न्यायालय ने पाकिस्तान से अपील की कि दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहन देने के लिए वह वहां के विभिन्न जेलों में बंद भारतीय कैदियों को रिहा करे। न्यायाधीश ने उर्दू के प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की प्रसिद्ध ये पंक्तियां भी उद्धृत कीं-कफस उदास है यारों, सबा से कुछ तो कहो। कहीं तो बहर-ए-खुदा आज जिक्र-ए-यार चले। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू और ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह सिर्फ उनकी रिहाई के लिए पाकिस्तान सरकार से अपील कर सकती है, क्योंकि भारतीय अदालतों के पास अन्य देशों को निर्देश देने की कोई शक्ति नहीं है। पीठ ने कहा, हम पाकिस्तानी अधिकारियों को कोई निर्देश नहीं दे सकते, क्योंकि हमारा उनके ऊपर अधिकार नहीं है। भारतीय अधिकारियों ने इस मामले में जो कुछ भी किया जा सकता है वह सब कुछ किया है। हालांकि, यह हमें याचिकाकर्ता की अपील पर विचार करने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों से अनुरोध करने से नहीं रोक सकता कि उसकी शेष सजा को माफ कर उसे मानवीय आधार पर रिहा कर दिया जाए। शीर्ष अदालत के अनुसार,हम पाकिस्तानी अधिकारियों से इस बात की अपील करने को उचित मानते हैं कि वह याचिकाकर्ता को मानवीय आधार पर रिहा कर दे, क्योंकि उसने जेल में करीब 27 साल बिता लिए हैं। अदालत ने यह आदेश गोपाल दास के परिवार की ओर से दायर याचिका का निस्तारण करते हुए पारित किया। गोपाल दास के परिवार के सदस्यों ने अपनी याचिका में शिकायत की थी कि अपनी सजा काटने के बावजूद दास 27 वर्षों से जेल में बंद हैं। केंद्र की ओर से दास और ऐसे ही अन्य कैदियों की रिहाई के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में दायर जवाबी हलफनामे का परीक्षण करने के बाद पीठ ने कहा कि वह मानवीय आधार पर भारतीय मूल के सभी अन्य कैदियों को रिहा करने पर विचार करे|

No comments:

Post a Comment