Sunday, March 13, 2011

समाज को नसीहत न दें न्यायाधीश


अहमदाबाद, एजेंसी : भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या ने कहा है कि जज कार्य के दौरान समाज को नसीहत देने से बाज आएं। न्यायालय की अति सक्रियता को लेकर हालिया आलोचना को ध्यान में रखते हुए कपाडि़या ने न्यायाधीशों से विधायिका की बुद्धिमता के आकलन से भी बचने की सलाह दी। जस्टिस पीडी देसाई की स्मृति पर आयोजित कार्यक्रम में संवैधानिक नैतिकता विषय पर बोलते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय सिद्धांतों की अदालतें हैं इसलिए न्यायाधीशों को किसी विषय से जुड़े सिद्धांतों के अलावा अन्य मामलों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। हमें समाज को उपदेश देने से बचना चाहिए। कपाडि़या बोले, समस्या यह है कि न्यायाधीश अपने मूल्यों, पसंद और नापसंद को समाज पर थोपने लगते हैं। न्यायाधीशों को यह ध्यान में रखना होगा कि वह विधायिका की बुद्धिमानी या विवेक का आकलन नहीं कर सकते। हमारे लिए संवैधानिक सिद्धांतों के दायरे में ही काम करना ही बेहतर है। चीफ जस्टिस ने जोर देकर कहा कि हमें यह बताने का कोई हक नहीं है कि लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर न्यायाधीश संवैधानिक सिद्धांतों के मुताबिक फैसले लेते हैं तो बहुत सारे विवादों से बचा जा सकता है। हालांकि कपाडि़या ने न्यायपालिका के संवैधानिक अधिकारों और समाज के हितों में संतुलन बनाने को चुनौती भरा करार दिया। मुख्य सतर्कता आयुक्त पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति का सीधे तौर पर जिक्र न करते हुए कपाडि़या ने उच्च संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों का हवाला दिया। उन्होंने कि ऐसे मामलों में निरपराध होने की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए या संवैधानिक पद की स्वच्छ छवि पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में वस्तुनिष्ठता न्यायिक फैसलों की सबसे बड़ी कसौटी है। कपाडि़या ने सुझाव दिया कि संवैधानिक नैतिकता पर जोर दिया जाए तो फैसलों में पारदर्शिता आती है। उन्होंने अफसोस जताया कि आज के समय में वरिष्ठ अधिवक्ता कानूनों के विकास में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं। उन्होंने छात्रों को सलाह देते हुए कहा कि आज के समय में हम इंटरनेट की ओर भागते हैं और जो कुछ भी जानकारी मिलती हैं उसी को आधार मान लेते हैं जो ठीक परंपरा नहीं है।

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