Monday, March 28, 2011

एससी-एसटी के लिए बनाएं विशेष कोर्ट


 अनुसूचित जाति और जनजाति पर बढ़ते अत्याचार और अदालत में मामलों की धीमी सुनवाई पर गंभीर रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से कहा है कि वे विशेष अदालतें गठित करें। केंद्र ने यह फैसला सामाजिक संगठनों के बार-बार सरकार को इन समुदायों पर हो रहे अत्याचारों और उनकी धीमी सुनवाई के बारे में बताने के बाद लिया है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक ने रविवार को यहां मीडिया को बताया, केंद्र ने सभी राज्यों को विशेष अदालत गठित करने के निर्देश दे दिए हैं। कई राज्यों ने तो ऐसी अदालत गठित करने की घोषणा भी कर दी है। वासनिक ने माना कि इन समुदायों के मामलों की सुनवाई की दर काफी धीमी है और 81 प्रतिशत से ज्यादा मामले अदालतों में लंबित हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार 1995 से 2009 के बीच अनुसूचित जनजाति पर अत्याचारों के 80,489 मामले पाए गए। इनमें 1,911 हत्या और 7,537 बलात्कार के मामले थे। हालांकि एनसीबी ने अनुसूचित जाति के मामले में कोई जानकारी नहीं दी है। बजट सत्र के दौरान संसद में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 2008 में 30,913 मामले दर्ज किए गए हैं। अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून के प्रतिपादक और पूर्व आइएएस अधिकारी पीएस कृष्णा का कहना है, समस्या केवल अदालत में बड़ी संख्या में मामलों का लंबित होना ही नहीं है, बल्कि इन पर सुनवाई करने वाले जजों और वकीलों की संख्या की कमी भी है। उन्होंने कहा, अनुसूचित जनजाति के लोगों को सार्वजनिक अदालतों में काफी समस्या होती है क्योंकि ज्यादातर लोग उनकी भाषा नहीं समझ पाते। कृष्णा के अनुसार, इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि ऐसे समुदाय के लोग ही वकालत करके आएं, जिन्हें उनकी भाषा की समझ के साथ उनके अधिकार से संबंधी पूरी जानकारी हो। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2009 के अंत तक 15,909 आपराधिक मामले कोर्ट में लंबित थे। जिन राज्यों में इन समुदायों पर सबसे ज्यादा अत्याचार के मामले सामने आए, उनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और उड़ीसा शामिल हैं|

No comments:

Post a Comment