Monday, March 7, 2011

इच्छामृत्यु वैध, लेकिन अरुणा को नहीं


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कानून में नई व्यवस्था देते हुए ब्रेन डेड मरीज का जीवन रक्षक उपकरण व इलाज हटा कर परोक्ष इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु देने की इजाजत दे दी है। दूरगामी प्रभाव वाले फैसले में कोर्ट ने परोक्ष इच्छा मृत्यु के लिए दिशानिर्देश तय करते हुए कहा है कि जब तक संसद इस बाबत कानून नही बनाती यह फैसला लागू रहेगा। हालांकि कोर्ट ने 38 साल से बिस्तर पर पड़ी मंुबई की नर्स अरुणा रामचंद्र शानबाग को इच्छा मृत्यु दिए जाने की मांग खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत उन देशों में शामिल हो गया है जहां किसी न किसी रूप में इच्छा मृत्यु या दया मृत्यु की इजाजत है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सीधेतौर (एक्टिव) पर विषाक्त इंजेक्शन आदि लगा कर इच्छा मृत्यु दिए जाने की अनुमति नहीं दी है। परोक्ष इच्छा मृत्यु के लिए भी हाईकोर्ट से मंजूरी लेनी अनिवार्य होगी। नई कानूनी व्यवस्था देने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति मार्केंडेय काटजू व न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने सुनाया है। पीठ ने कहा कि वे वरिष्ठ अधिवक्ता अध्यार्जुना की दलील से सहमत हैं कि में हमारे देश में विशेष परिस्थितियों में परोक्ष इच्छा मृत्यु की इजाजत होनी चाहिए। पीठ ने इसका विरोध करने वाले अटार्नी जनरल जीई वाहनवती की दलील ठुकरा दी। परोक्ष इच्छा मृत्यु की अनुमति के दिशा निर्देश तय करते हुए पीठ ने कहा कि मरीज के माता पिता, जीवनसाथी, अन्य रिश्तेदार और इन लोगों के न होने पर निकट मित्र या इलाज करने वाला डाक्टर जीवन रक्षक उपकरण या इलाज हटाने का फैसला कर सकता है। पीठ ने कहा कि अरुणा के बारे में यह फैसला करने का हक केईएम अस्पताल स्टाफ को है जो पिछले 38 सालों से उसकी देखभाल करता आ रहा है और स्टाफ चाहता है कि अरुणा को जीने दिया जाए। याचिकाकर्ता पिंकी विरानी को अरुणा के बारे में फैसला करने का हक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर भविष्य में केईएम अस्पताल स्टाफ अपना विचार बदलता है तो उस स्थिति में उसे अरुणा का जीवन रक्षक इलाज हटाने से पहले बंबई हाईकोर्ट से अनुमति लेनी होगी। पीठ ने अन्य मामलों में भी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि भले ही मरीज का जीवन रक्षक इलाज हटाने का सगे संबंधियों या निकट मित्र ने फैसला कर लिया हो, लेकिन उसके लिए हाईकोर्ट से मंजूरी लेनी जरूरी होगी। हाईकोर्ट से मंजूरी की शर्त लगाने का कारण साफ करते हुए पीठ ने कहा कि दुरुपयोग की संभावनाओं को देखते हुए हाईकोर्ट से मंजूरी लेना मरीज, परिवार और समाज के हित में होगा|

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