Thursday, February 3, 2011

अब गांवों के अवैध कब्जों पर चला सुप्रीमकोर्ट का डंडा


शहरों के बाद गावों के अवैध कब्जेदारों पर भी सुप्रीमकोर्ट का डंडा चला है। सुप्रीमकोर्ट ने गांव सभा की जमीन व तालाबों पर अवैध कब्जा जमाए लोगों के प्रति सख्त रुख अख्तियार करते हुए देशभर में ग्राम सभा, ग्राम पंचायतों और तालाबों आदि की जमीन से अवैध कब्जेदारों को हटाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने गांव सभा की जमीन निजी व्यक्तियों या व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए देने को गैरकानूनी ठहराया है। ये निर्देश न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू व न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने पंजाब के पटियाला जिले में आने वाले रोहरजागीर गांव में तालाब की जमीन पर अवैध कब्जा कर निर्माण कराने वाले जगपाल सिंह की याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में दिये हैं। पीठ ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वह गांव सभा की सामुदायिक उपयोग की जमीन पर से अवैध कब्जे व अतिक्रमण हटाने के लिए योजना बनाये और उन्हें बेदखल करें। कोर्ट ने मुख्य सचिवों को आदेश पर कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों की रिपोर्ट आने के बाद 3 मई को इस मामले की फिर सुनवाई होगी। सामुदायिक उपयोग के लिए निश्चित गांव सभा की जमीन और तालाबों पर बढ़ते अवैध कब्जों पर चिंता जताते हुए पीठ ने कहा कि हमारे पूर्वज जानते थे कि कुछ वर्षो में सूखा पड़ सकता है और पानी की कमी हो सकती है। यही नहीं, जानवरों के पीने, नहाने आदि के लिए भी पानी जरूरत होगा इसीलिए उन्होंने हर गांव में तालाब बनाये, हर मंदिर के साथ एक पानी का टैंक बनाया। ये वर्षा के जल संचयन की परंपरा थी जो हजारों वर्षो से चली आ रही थी। कुछ दशकों से लालची लोगों ने तालाबों के मूल स्वरूप को समाप्त कर उन पर निर्माण कर लिया जिससे देश में पानी की किल्लत हो गयी। पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में तो यूपी कंसोलिडेशन आफ होल्डिंग्स एक्ट 1954 का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ और कंसोलिडेशन अथारिटीज की मदद से गांव सभा की जमीन खतम कर दी गयी। ऐसा ही चलन अन्य राज्यों में भी हो सकता है। गांव की सामुदायिक भूमि हड़पने के इन आदेशों की समीक्षा का समय आ गया है। स्कीम अवैध कब्जेदारों की त्वरित बेदखली की होनी चाहिए। अवैध कब्जों को नियमित नहीं किया जा सकता। सिर्फ अपवाद स्वरूप उन मामलों में जहां सरकारी अधिसूचना से जमीन भूमिहीन मजदूरों, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति को दी गयी है अथवा उस जमीन पर कोई स्कूल अस्पताल या इसी तरह का सामुदायिक जरूरत का काम हो रहा है, को ही नियमित किये जाने की अनुमति होगी।


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