Saturday, February 12, 2011

कोई भी सरकार मजबूत न्यायपालिका नहीं चाहती


फोन टैपिंग के आदेश को जांचे-परखे बगैर बातचीत टेप करने पर चिंता जताते हुए सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से पूछा कि सेवाप्रदाता कंपनी का लाइसेंस क्यों नहीं निरस्त किया गया। पीठ ने आज भी व्यवस्था पर कई टिप्पणियां कीं। मुकदमों के वर्षो लंबित रहने और न्यायपालिका को बजट में थोड़ी राशि आवंटित किये जाने पर पीठ ने यहां तक कहा कि कोई भी सरकार मजबूत न्यायपालिका नहीं चाहती। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व एके. गांगुली की पीठ ने अमर सिंह के फोन टैपिंग मामले में सुनवाई के दौरान कहा,गृह सचिव के जिस आदेश के आधार पर फोन टैप किया गया है उसमें बहुत सी व्याकरण और वर्तनी की गलतियां हैं। अगर सेवा प्रदाता कंपनी के अफसरों ने ठीक से आदेश को पढ़ा होता तो गलतियां देखते ही संदेह पैदा होता। आदेश में 7-8 गलतियां हैं। एक आईएएस अधिकारी वर्तनी और व्याकरण की ऐसी गलतियां कैसे कर सकता है। सेवा प्रदाता कंपनी से या तो गलती हुई है या उसने जानबूझकर नजर अंदाज किया। यह घोर लापरवाही है। सेवा प्रदाता कंपनी का लाइसेंस क्यों नहीं निरस्त किया गया। पीठ ने फोन टैपिंग में इस तरह की लापरवाही पर चिंता जताते हुए कहा, ऐसे तो कोई व्यक्ति सेना प्रमुख का नंबर पा जाएगा और फर्जी आदेश बना कर सेवाप्रदाता कंपनी को भेज देगा। यह गंभीर और खतरनाक स्थिति है। पीठ ने अमर का फोन टैप कराने के मुकदमे में आरोप तय होने में चार साल का समय लगने पर भी चिंता जताई। मुकदमों के लंबित रहने पर ढांचागत सुविधाओं की भी बात उठी। अमर के टैप फोन के प्रसारण से रोक हटाने की मांग कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने जब कहा, मुकदमे की सुनवाई में देरी जेल में बंद लोगों के मौलिक अधिकार का हनन है तो न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा, यहां मौजूद सॉलिसिटर जनरल और एडीशनल सॉलिसिटर जनरल उनकी बात से सहमत नहीं होंगे, लेकिन उनका मानना है कि कोई भी सरकार मजबूत न्यायपालिका नहीं चाहती। उन्होंने बजट में न्यायपालिका के लिए आवंटित राशि की ओर इशारा करते हुए कहा कि न्यायपालिका के लिए एक फीसदी से भी कम बजट आवंटित है। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से दिल्ली के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित मुकदमों का ब्योरा मांगा।

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