Tuesday, February 15, 2011

धोखाधड़ी के आरोप में तीन वर्ष का कठोर कारावास


कूटरचित दस्तावेजों के जरिए पासपोर्ट बनवाने, अपराधिक षड्यंत्र कर पाकिस्तान की यात्रा करने व धोखाधड़ी करने के मामले में आरोपी एजाज अहमद उर्फ राजा, उसकी मां नरगिस बेगम व भाई इरफान अली को एटीएस के विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आबिद शमीम ने दोषी ठहराते हुए कठोर कारावास सहित जुर्माना ठोका है। अदालत ने आरोपी एजाज को दो मामलों में दोषी ठहराते हुए धोखाधड़ी के आरोप में तीन वर्ष के कठोर कारावास, तथ्यों को छुपाने एवं उन्हें सच ठहराने के आरोप में दो वर्ष के कठोर कारावास, पासपोर्ट अधिनियम के तहत दो वर्ष केकठोर कारावास सहित 15 हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है।

वहीं अदालत ने दूसरे मुकदमे में आरोपी एजाज को धोखाधड़ी की साजिश रचने के आरोप में दो वर्ष के कठोर कारावास सहित 5000 रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है। अदालत ने आरोपी एजाज की मां नरगिस बेगम एवं भाई इरफान अली को पासपोर्ट अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास एवं तथ्यों को छुपाने व उन्हें सत्य के रूप में इस्तेमाल करने के आरोप में दो वर्ष के कठोर कारावास सहित 15 हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई है।

इस मामले में अदालत ने विवेचक के लचर विवेचना पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि अभियुक्त एजाज अहमद की गिरफ्तारी के बाद उसकी सूचना मिलने पर अभियुक्त इरफान एवं नरगिस बेगम द्वारा मूल पासपोर्ट नष्ट कर दिए गए। अदालत ने कहा कि पहले मुकदमे में विवेचक द्वारा कोई मूल पासपोर्ट बरामद नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में अभियुक्त इरफान अली एवं नरगिस बेगम द्वारा पासपोर्ट को नष्ट किया जाना समझ से परे है। अदालत ने कहा कि विवेचक द्वारा अभियुक्तों का पुलिस अभिरक्षा प्राप्त कर मूल पासपोर्टो की बरामदगी का कोई प्रयास नहीं किया गया बल्कि अभियुक्तों के बयान को विश्वसनीय मानकर इतिश्री कर दी गयी जो आपत्ति जनक है। वहीं विवेचक ने साक्ष्य के दौरान नष्ट हुए पासपोर्टों के संबन्ध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। जबकि इस मामले में न ही कोई स्वतंत्र गवाह ही प्रस्तुत किया गया। अदालत ने कहा कि इस स्तर पर इस तथ्य का उल्लेख कर देना आवश्यक एवं विधिक इमानदारी प्रतीत होती है कि यदि अभियोजन अधिकारी नागेन्द्र दीक्षित द्वारा अर्जी प्रस्तुत कर गवाह सुशील भल्ला पासपोर्ट अधिकारी को तलब न कराया होता तो अभियुक्तों को काफी लाभ मिल सकता था।

अभियोजन की ओर से सरकारी वकील नागेश दीक्षित का तर्क था कि पहले मामले की रिपोर्ट एटीएस के उपनिरीक्षक शैलेन्द्र कुमार सिंह ने 24 जून 2008 को अभियुक्त एजाज अहमद के विरुद्ध थाना हजरतगंज में दर्ज कराई थी। जांच के दौरान पाया गया कि अभियुक्त ने फर्जी तथ्यों के आधार पर पासपोर्ट कार्यालय लखनऊ से नाजायज तरीके से 3 पासपोर्ट बनवाए। कहा गया कि अभियुक्त ने गुपचुप तरीके से इन पासपोर्टों पर कई बार पाकिस्तान की यात्राएं की, वहीं कई पाकिस्तानियों का अभियुक्त एजाज अहमद के घर आना जाना था। वहीं दूसरे मामले की रिपोर्ट उपनिरीक्षक ओपी त्रिपाठी ने थाना हजरतगंज में दर्ज कराई कि अभियुक्त एजाज ने स्वयं के नाम से फर्जी तथ्यों एवं अभिलेखों के आधार पर नाजायज तरीके से सात पासपोर्ट बनवा चुका है। कहा गया कि अभियुक्त ने आपराधिक षड्यंत्र करके अपने भाई इरफान अली व मां नरगिस बेगम के नाम तीन पासपोर्ट बनवाए। कहा गया कि अभियुक्तों ने आपराधिक षड्यंत्र करके कई नामों से विभिन्न समय पर नाजायज उद्देश्य की पूर्ति हेतु बीजा प्राप्त कर पाकिस्तान की यात्रा की है। 25 जून 2008 को एटीएस टीम ने अभियुक्त एजाज अहमद को साहू सिनेमा हाल के पास गिरफ्तार किया था। सरकारी वकील ने आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा सजा दिए जाने की मांग करते हुए कहा कि अभियुक्तों का कृत्य राष्ट्र विरोधी अपराध है एवं यदि उन्हे छोड़ दिया जाता है तो वे समाज के लिए खतरा हैं।
शादीशुदा पुत्रियां होंगी माता पिता के भरण पोषण के लिए उत्तरदायी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 (7) एवं धारा 408 (3) दं.प्र.सं. में संशोधन के बाबत आठवीं रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेजी है।

इन संशोधनों के बाद आधारहीन तथ्यों पर आपराधिक मुकदमो में स्थानांतरण अर्जी के निरस्त होने पर याचिकाकर्ता को 25000 रुपए हर्जाना देना होगा। आयोग का मानना है कि इससे आधारहीन तथ्यों पर उच्च न्यायालय में आपराधिक मुकदमो में स्थानांतरण अर्जी देने पर रोक लगेगी एवं आपराधिक मुकदमो के त्वरित निस्तारण की संभावना प्रबल होगी।

ज्ञात हो कि प्रदेश केजनपद न्यायाधीशों के सेमिनार में धारा 407 (7) दं.प्र.सं. में हर्जाने की राशि बढ़ाने की मांग की गयी, वहीं आयोग ने रिपोर्ट में संस्तुति की गयी कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में अगर शादी शुदा पुत्रियों के पास समुचित संसाधन उपलब्ध हैं तो वे भी अपने माता-पिता के भरण पोषण करने के लिए उत्तरदायी होगी। आयोग ने धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता में बाबा-दादी को भी भरण पोषण पाने के अधिकार की संस्तुति की गयी।

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