Monday, February 7, 2011

पीएम बोले, हद में रहे न्यायपालिका


सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न मामलों में सरकार के कामकाज को लेकर की गई प्रतिकूल टिप्पणियों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने न्यायपालिका को अपनी हद में रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा के अधिकार का इस्तेमाल सरकार के दूसरे विभागों को मिली उनकी संवैधानिक भूमिकाओं को कमजोर करने के लिए नहीं होना चाहिए। मनमोहन रविवार को हैदराबाद में 17वें राष्ट्रमंडल विधि सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। प्रधानमंत्री का कहना था कि न्यायिक समीक्षा के अधिकार का इस्तेमाल न्यायपालिका जवाबदेही तय करने के लिए करे। लेकिन इसका उपयोग सरकार की अन्य शाखाओं को दी गई संवैधानिक जिम्मेदारियों को कमजोर करने के लिए कत्तई नहीं होना चाहिए। पीएम के कहने का आशय था कि सरकार पर टिप्पणी करने के मामले में न्यायपालिका अपनी सीमा में रहे। राष्ट्रमंडल विधि सम्मेलन में 53 देशों के 800 सौ प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। जिनमें पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी समेत 15 राष्ट्रमंडल देशों के मुख्य न्यायाधीश शामिल हैं। मनमोहन का यह बयान 2जी स्पेक्ट्रम, सीवीसी की नियुक्ति और अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणी के मद्देनजर आया है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की मौजूदगी में प्रधानमंत्री का कहना था कि न्यायिक समीक्षा के मामले में न्यायपालिका संयम बरते। क्योंकि यह सरकार के विभिन्न शाखाओं को मिली उनकी संवैधानिक भूमिकाओं की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है। मनमोहन ने इस मौके पर कहा कि विकासशील देशों को ऐसी कानूनी प्रणाली की जरूरत है, जो तेज आर्थिक तरक्की के अनुकूल हो। पीएम के अनुसार, एक ऐसा कानूनी तंत्र विकसित होना चाहिए, जिससे विकास का लाभ सभी वर्गो को समान रूप से मिल सके। लेकिन प्रधानमंत्री की सीख के बावजूद मुख्य न्यायाधीश कपाडि़या ने न्यायपालिका का तेवर दिखा ही दिया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि का लाभ सभी को नहीं मिलने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया।

तेज गति से न्याय मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती : तुलसी
वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा है कि तेज गति से न्याय देना वर्तमान में न्यायपालिका की सबसे बड़ी चुनौती है। तुलसी ने राष्ट्रमंडल कानून सम्मेलन के इतर एक न्यूज एजेंसी से कहा कि वर्तमान समय में न्यायपालिका के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि तेज गति से न्याय कैसे दिया जाए। निष्कर्ष पर पहंुचने में काफी लंबा समय इंतजार करना पड़ता है। यह स्वीकार्य नहीं है। यह न्याय व्यवस्था और लोकतंत्र दोनों के के लिए अच्छा नहीं है। हमें न्याय तेज गति से मुहैया कराना चाहिए जिसके लिए जो भी जरूरी कदम हो उठाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून नहीं बल्कि कानून लागू करना अधिक महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि न्याय निचले स्तर पर और तेज गति से मुहैया हो। अदालतों को आधुनिक उपकरण और प्रौद्योगिकी मुहैया कराई जानी चाहिए तथा पुलिस स्टेशनों का आधुनिकीकरण होना चाहिए।


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