इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में मुकदमों का त्वरित गति से निपटारा करने के लिए गठित फास्ट ट्रैक अदालतों का भविष्य खतरे में है। 10 वर्ष से चल रही इस योजना को भारत सरकार ने आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक मदद की अवधि भी इसी 28 फरवरी को खत्म होने जा रही है। हालांकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से अतिरिक्त पद सृजित होने तक इस व्यवस्था को जारी रखने का निर्देश दिया है। इसके बावजूद इन अदालतों में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों में से अधिकांश पर अपने मूल कैडर सिविल जज सीनियर डिवीजन के पद पर वापसी की तलवार लटक रही है। प्रदेश में 242 फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया था। केंद्र सरकार ने पांच वर्ष के लिए यह योजना शुरू की थी। यह अवधि पूरी होने के बाद सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप पर इन अदालतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था, जिसकी अवधि मार्च 2010 में समाप्त हो चुकी है। इसके बाद से यह अदालतें राज्य सरकार की सहायता से कामकाज कर रही हैं। अब इनके स्टाफ को समायोजित करने की भी समस्या है। यदि राज्य सरकार अपर जिला जजों के नए पद सृजित करती है तो इनका भी अपने पद पर बना रहना सुनिश्चित हो सकेगा। अन्यथा 152 एडीजे अपने मूल पद पर वापस होंगे। फास्ट ट्रैक कोर्ट में सीनियर डिवीजन को तदर्थ प्रोन्नति देकर फास्ट ट्रैक कोर्ट में तैनात किया गया था।
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