Wednesday, February 9, 2011

बाल विवाह पर शीर्ष न्यायालय चिंतित


रोक के बावजूद बाल विवाह होने और उसमें गणमान्य व्यक्तियों की शिरकत पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। कोर्ट ने विभिन्न कानूनों में दिए गए उम्र के अंतर को दूर करने पर केंद्र सरकार से हलफनामा दाखिल करने को कहा है। केंद्र सरकार ने मंगलवार को कोर्ट में कहा कि सभी कानूनों में दी गई उम्र में एकरूपता संभव नहीं है, क्योंकि प्रत्येक कानून खास सामाजिक उद्देश्य से बनाया गया है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये बात विभिन्न कानूनों में विवाह की उम्र में अंतर को समाप्त करने की मांग वाली महिला आयोग की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कही। आयोग की ओर से दाखिल याचिकाओं में दिल्ली और आंध्र प्रदेश के उन फैसलों को चुनौती दी गई है जिनमें 16 साल की लड़की के विवाह को वैध ठहराया गया था। पीठ ने बाल विवाह के प्रचलन पर चिंता जताते हुए कहा कि अब भी बाल विवाह हो रहे हैं। कई शादियों में मंत्री और जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं अधिकारी इससे अवगत होते हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंद्रा जयसिंह ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सभी कानूनों में उम्र की एकरूपता संभव नहीं है, लेकिन 16 साल की लड़की की शादी को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने विभिन्न कानूनों में दी गई विवाह की उम्र का ब्योरा दिया। इतना ही नहीं, विवाह की उम्र में एकरूपता के बाबत विधि आयोग की सिफारिशों का भी हवाला दिया। जिसमें 16 से 18 साल की उम्र के बीच हुए विवाह को शुरू से शून्य न घोषित करके, शून्य घोषित किए जाने योग्य कहा गया है। जयसिंह ने कहा कि बाल विवाह गैर कानूनी है और उसके लिए दंड का प्रावधान है, लेकिन दिल्ली व आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसलों में कहा गया है कि अगर 16 साल की लड़की अदालत में कहती है कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है तो फिर लड़के को अपराधी नहीं माना जा सकता। यह एक गंभीर मसला है और अगर ऐसी शादियों को अनुमति दी गई तो बाल विवाह पर रोक लगाने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।


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