Monday, February 28, 2011

प्रोन्नति में आरक्षण पर यथास्थिति बनाए रखें


 सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने ये निर्देश उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन व कुछ निजी याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद जारी किए। मालूम हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 4 जनवरी को उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के नियम को गैर कानूनी ठहराते हुए निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले को राज्य सरकार, यूपी पॉवर कारपोरेशन व कुछ निजी व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सोमवार को न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर व न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए प्रतिपक्षियों को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किए। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल, सतीश चंद्र मिश्रा, अधिअर्जुना व निजी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव व राजकुमार गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने एम.नागराजा मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समझने में भूल की है। यह बहुत गंभीर मामला है। फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। यह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। मालूम हो कि हाईकोर्ट ने प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के नियम को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि राज्य सरकार ने एम नागराजा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया है। आरक्षण का लाभ देने से पहले कर्मचारियों के पिछड़ेपन और नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व के आंकड़े एकत्र नहीं किए गए हैं। हाईकोर्ट ने न सिर्फ प्रोन्नति में आरक्षण देने के 17 अक्टूबर 2007 के सरकारी आदेश को निरस्त किया था, बल्कि आरक्षण देने वाले कानून यूपी पब्लिक सर्विसेस (एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण) कानून 1994 की धारा 3(7) तथा यूपी गवर्नमेंट सर्वेन्ट सीनियरिटी (तीसरा संशोधन) नियम 2007 के नियम 8ए को भी निरस्त कर या था। हाईकोर्ट ने सरकार को नए सिरे से प्रोन्नति सूची तैयार करने का निर्देश दिया था|

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