सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर नौकरी पाने वाला व्यक्ति वेतन समेत किसी भी अन्य लाभ का हकदार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि यदि केवल रोजगार कार्यालय से नामों को आमंत्रित कर या नोटिस बोर्ड पर सूचना लगाकर कोई नियुक्ति की जाती है तो उससे संविधान के अनच्छेद-14 और 16 के तहत निर्धारित जरूरतें पूरी नहीं होंगी। न्यायाधीश पी सताशिवन तथा बीएस चौहान की पीठ ने कहा कि इस प्रकार की प्रक्रिया भारत के संविधान के अनच्छेद 14 और 16 के तहत निर्धारित नियमों का उल्लंघन है, क्योंकि यह उन उम्मीदवारों को अवसर से वंचित करती है जो उस पद के लिए योग्य हैं। इन नियमों का उल्लंघन कर नियुक्त व्यक्ति वेतन समेत किसी अन्य लाभ का हकदार नहीं है। अदालत ने उड़ीसा सरकार द्वारा दाखिल अपील को सही ठहराते हुए यह फैसला दिया। उड़ीसा सरकार ने राज्य के उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कुछ ऐसे प्रवक्ताओं को यूजीसी के संशोधित वेतनमानों के भुगतान का निर्देश देने का आदेश दिया गया था जिनकी नियुक्ति गैर कानूनी थी और जो बढ़े वेतनमान के लिए पात्रता नियमों को पूरा नहीं करते थे। इस मामले में ममता तथा अन्य को 9 जुलाई 1979 को लेक्चरर नियुक्त किया गया था। इन पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन संबंधित कालेजों के नोटिस बोर्ड पर सूचना लगाकर आमंत्रित किए गए थे। इन कालेजों को सरकार से अनुदान सहायता मिलती थी। इसके बाद 6 अक्तूबर 1989 को राज्य सरकार ने संशोधित वेतन के संबंध में अधिसूचना जारी की जो एक जनवरी 1986 से प्रभावी होनी थी। केवल वही लेक्चरर संशोधित वेतनमान पाने के योग्य थे जहां पदों को 1 अप्रैल 1989 की सूचना के तहत भरे गए थे। और इन पदों पर नियुक्ति जिन लेक्चररों का अकादमिक रिकार्ड शानदार था। संबंधित लेक्चररों के पात्रता मापदंडों को पूरा नहीं करने के बावजूद उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को भी संशोधित वेतनमान दिया जाए, भले ही दावेदारों ने 10-12 साल बाद ही अदालत से संपर्क क्यों न किया हो।
No comments:
Post a Comment